दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: माँ से मिलता है ज्ञान का रसपान
माँ शारदे के चरणो में हर रोज बैठता हूं तब "ज्ञान का रसपान" हर रोज कराती है माँ शारदे मेरी.....
माँ से मिलता है ज्ञान का रसपान
माँ शारदे के चरणो में हर रोज बैठता हूं तब “ज्ञान का रसपान” हर रोज कराती है माँ शारदे मेरी…..
उपासना में बैठता हूं तब हर रोज माँ दर्श दिखलाकर आशिर्वाद देती है मुझे हर रोज माँ शारदे मेरी……
लिखने बैठता हूं कविता तो अलौकिक दुनिया में शून्य प्रवास की ओर खिंच ले जाती है ध्यान मेरा माँ शारदे मेरी…….
ज्ञान की ज्योति दिखलाकर कविता, लेख लिखने के समय नए नए शब्द सिखलाती है मुझे माँ शारदे मेरी…….
शब्द ही “ब्रह्म” होते है, शब्दों की समय सिमा नही होती है, शब्द ही अजर अमर होते है, “अलौकिक शब्दों ” का रसपान कराती है हर रोज माँ शारदे मेरी……
माँ शारदे की अलौकिक दुनिया से जब मैं बाहर की दुनिया में आता हूं तब वही संसार सागर पाता हूं जिसमें सब लोग अपनी रोजी रोटी की तलाश करते है और मैं भी वही करता हूं……
माँ शारदे का उपासक हूं, माँ शारदे की आज्ञा पाकर ही कलम् चलाता हूं, माँ शारदे के चरणों में नमनः करता हूं……
माँ शारदे चरणम् गच्छामि……
जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
लेखक दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
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