यादें जन्म भूमि की……
=====================
हवाओं से कहना की……..
वे अपना रुख ना बदले
मैं अपनी जन्म भूमि की
कुछ यादें वही छोड़ आया हूं…..
ना उचाले इधर उधर
स्मर्णिका मेरे नयन दृष्यों की
जन्म भर निवास के लिए
नसीब मेरे नहीं रहा वो स्थान
उस में मेरा बचपन समाया है
जन्म भूमि जन्मों जन्मान्तर
स्मरणार्थ रहती है सदैव
अब मैं दूर हूं 1200 k.M. प्रदेश में
मन रमण करता है वही मेरा
पर मन में यादें संजोये रखता हूं
“जन्म भूमि होती है स्वर्ग से महान्”
यह बात मैं ठीक से समझता हूं
कह दो हवाओं से की………
वे अपना रुख ना बदले
मैं फिर लौटकर आउंगा
पुनर्जन्म मरुधर मारवाड़ में ही पाउंगा
मनुष्य ना बना तो कोई गम नहीं
पर मोर बनकर वही आउंगा
या कोयल बनकर जरुर आउंगा
रहे अधूरे गीत मेरे मन के
पेड़ों पर बैठकर तालाब किनारे
प्रातःकाल शीतल हवाओं की
लहरों के साथ गुन गुनाउंगा
कह दो हवाओं से की……..
मेरे बचपन के नयन दृष्यों को
जैसे थे वैसे रहने दो…..
मेरे बचपन की यादें उखेरना छोड़ दें
मैं फिर लौटकर वही आउंगा….
मैं जन्म मारवाड़ में ही पाउंगा…….
मैं कवि हूं कवि…..
कविता जरुर सुनाउंगा……
======================
🙏जय श्री विश्वकर्मा जी की 🙏
कवि: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मो: 9421215933
Gyanjyotidarpan.com पर पढ़े ताज़ा व्यापार समाचार (Business News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट ज्ञान ज्योति दर्पण पर पढ़ें।
हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़े
Gyan Jyoti Darpan
Comments are closed.