दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: सत्य को जानो एक को पहिचानो
ईश्वर से यह मांग हर रोज की प्रार्थना में रोज रोज रखा करो की हे ईश्वर आपने मुझे इस धरातल पर तो भेजा है पर मुझ अज्ञानी को यह बिल्कुल मालुम नहीं है कि मैं कौन हूं, मुझे करना क्या है।
लेखक की कलम से…..
मैं कौन हूं
हर रोज प्रातकाल व सांयकाल में एक आधा घंटा अपने घर में एकान्त में गर्म आसन(वूलन आसान) पर आंखे बंद कर बैठकर शांत मन से अपने आप से प्रश्न यह करो की मैं कौन हूं, मुझे करना क्या है, मैं किस लिए इस पृथ्वी पर आया हूं…….
ईश्वर से यह मांग हर रोज की प्रार्थना में रोज रोज रखा करो की हे ईश्वर आपने मुझे इस धरातल पर तो भेजा है पर मुझ अज्ञानी को यह बिल्कुल मालुम नहीं है कि मैं कौन हूं, मुझे करना क्या है, मनुष्य यौनी में पृथ्वी पर भेजा तो है पर करना क्या है इसका मुझे ज्ञान देना,क्या मै दिनभर काम करु दो समय खाना खाऊ और शादी कर दो चार बच्चे पैदा कर उनका संसार का बस्तान बिठाकर समाज में रिश्तेदारों से सम्पर्क कर बुढा हो जाऊ व जीवन समाप्त कर लू, नही नही यह तो मेरा अज्ञान है इसके आगे भी ओर कुछ जानना चाहता हूं हे प्रभु मेरी मद्दद करो इसीलिए मैं आपके ध्यान में बैठा हूं मुझे मुक्ती का मार्ग बताओ इस जीव के कल्याण का मार्ग बताओ मेरे प्रभु……
बस यह तीव्र जिज्ञासा मन में लेकर प्रभु के सामने रोज रोज गिड़गिड़ाओ व छोटे बच्चे जैसा रोना भी रोया करो यह भाव आंतरिक ह्रदय से उठने चाहिए व तीव्र प्रभु मिलन की इच्छा मन में लेकर ध्यान में बैठना चाहिए ध्यान में आसन पर आंखे बंद कर जब बैठो तो आंतरिक दृष्टि से दोनो आंखो के भवो के बीच ध्यान को केन्द्रित करो घड़ी आधी घड़ी रोज प्रातकाल संध्या काल में हर रोज ध्यान में बैठने की आद्दत बना लो, ध्यान में बैठने के समय घर संसार के विचारों से बिलकुल निर्लेप होकर बैठना चाहिए।
उदेश्य केवल एक ही होना चाहिए की मुझे ईश्वर प्राप्ति हो,बस इस जिज्ञासा को लेकर शुध्द भाव से ध्यान में बैठे।
घर संसार (गृरस्थी जीवन) में रहकर भी यह ध्यान साधना लम्बे समय तक करते रहने से ज्ञान क्षुष्मू (ज्ञान केन्द्र) के आगे लगे अज्ञान के सात आवरण धीरे धीरे एक एक करके अज्ञान के आवरण हटने लगेंगे यह लम्बे समय तक जाप व ध्यान की प्रक्रिया का ही परिणाम है जैसे रस री आवत जातते सिल पर पड़त निशान वह एक दिन यह ज्ञान मेहसूस होने लगेगा की मैं कौन हूं मुझे करना क्या है तब आप सात्विक सरल स्वभाव वाले दयावान पर हितकारी स्वभाव की ओर अग्रसर होते जाएंगे व समय पाकर आत्मा साक्षात्कार के करीब पहुंच जाएंगे तब दोनो आंखो के भवो के बीच आंतरिक दृष्टि से देखते रहने पर ध्यान के समय लाल पीली रोशनी देख पाएंगे गोल चक्र फिरते दिखाई देंगे हल्के से बादलों की तरह परशाई चलती दिखाई देंगी तब भी आप मन को कही भटकने मत देना व स्थिरता कायम बनाएं रखना व मन की चंचलता को काबू में रखकर प्रभु से मिलन (प्रभु दर्शन) की आस (जिज्ञासा) लगाये बैठे रहना, पीठ सिद्धी सरल रखते हुए बिगर हिले स्थिरता के साथ बैठे रहना। इस प्रकार की लम्बी ध्यान साधन व जाप के बाद आप अपने को हल्का पुल्का मेहसूस करेंगे, इसके बाद दिन में आप अपने रोज की दिनचर्या के अनुसार अपने काम (पुरुषार्थ) करते रहिएगा तब भी आपके अंदर यह ध्यान किर्या (स्वयम चलित) चलती रहेगी व आपके ज्ञान में बढ़ोतरी होती जाएगी।
यह आप स्वयम मेहसूस करेंगे, यह आध्यात्मिक अभ्यास जीव कल्याण के मार्ग को प्रोत्साहन जनक बनाता है वह आगे चलकर आत्मक्षाष्कार भी हो जाता है, कहते है की आत्मक्षाष्कार के पहले ध्यान अवस्था में सौ सुर्य का जितना प्रकाश होता है उतना प्रकाश दिखाई देता है वह आंनद इतना बरसता है की उस अवस्था में कुछ भी शेष नही रहता है व तीस चालीस घंटों तक शरीर निर्जीव अवस्था में एक ही जगह पड़ा रहता है फिर चेतन अवस्था में आ जाता है तब यह आत्मा ईश्वर तत्व में विलीन (प्रभु मिलन) हो जाती है जिसे हम आत्मक्षाष्कार कहते है, यह ध्यान योग से संम्भव है।
यह लेख मैं अपने जीवन के अनुभवों से लिख रहा हूं कुछ गुरुजी के प्रर्वचनों से कुछ ज्ञानी लोगों के सम्पर्क में रहने से जो आज तक देखा सुना है पढा है वही मैं अपने ज्ञान विवेक से लिखा हूं, ध्यान योग की साधना मैंने भी करी है वह अभी भी करता हूं जिसका मुझे बड़ा आनंद मिलता है व ज्ञान बढोत्तरी में फाईदा ही हुआ है, फिर भी मुझे मिले अनुभवों के आधार पर यह आध्यात्मिक लेख लिखा हूं, जो गल्ती करे वो इंसान वह जो गल्ती नही करे वो भगवान।
गल्ती के लिए मैं क्षमा प्रार्थी रहूंगा व कोई नेक सलाह देना चाहे तो मैं उनका स्वागत करुंगा पर बहस वह कटाक्ष नही करे, अपना शिष्य समझकर मार्ग दर्शन जरुर करे, यही मेरी नम्र विनंती रहेगी।
जय अंगिरा ऋषि जी की
लेखक: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मो: 9421215933
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