दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: लेखक, कवि व पत्रकार बनना नहीं हैं इतना आसान…..?

सामने वाले के मुख से वाह क्या लिखा है..... बहुत बढ़िया लिखा है। यह दिल को छू लेने वाली भाषा ही एक लेखक/कवि के पाठकों की संख्या बढाती है।

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लेखक व कवि बनना नहीं हैं इतना आसान…..?
यह कथन 100 % सत्य है इसका कारण यह है की हेड लाईन एक मिलती है लिखने के लिए पर उसे कविता में गाने (लिखना) के लिए लिखना बड़ा ही मुश्किल काम होता है, कौनसा शब्द कहा बिठाना यह समझ आने में बर्षो का समय लग जाता है कारण एक शब्द कही जगह पर भिन्न भिन्न परिस्तिथियों में वापर किया जाता है बस उस कविता व लेख की कहानी को समझना चाहिए तभी कौन से शब्द का महत्व कहा पर कितना प्रभाव पाठकों पर डालेगा बस यही तोल-मोल एक लेखक को लेखक / कवि बनाए रखता है।

सामने वाले के मुख से वाह क्या लिखा है….. बहुत बढ़िया लिखा है। यह दिल को छू लेने वाली भाषा ही एक लेखक/कवि के पाठकों की संख्या बढाती है। तब प्रिन्ट (प्रेस) मिडीया, डिटीझल मिडीया की पत्रिकाओं व पुस्तकें प्रकाशित करने वाले संपादक भी उस कवि/लेखक के लेखन (कविता, आलेख) को छापने के लिए आतूर रहते है। उस लेखक के हमेशा सम्पर्क में रहते है। वह उस लेखक की लिखी सामग्री भेजने का आग्रह करते रहते है। इससे पत्रिका का मान बढ़ता है। पत्रिका के पाठकों की संख्या भी बढ़ती है।

पत्रकार राजकीय वार्ता को परिभाषित करने में माहिर होते है, समाजिक समाचारों से समाज को अवगत कराने में चटपटी खबरों को लिखकर प्रेस में छपवाकर सुर्खियों में बने रहते है, सच्चाई लिखने में निर्भय निडर होकर छुपे राज को भी उज्जागर करने में शंका नहीं रखते है वह समाज के लोगों को पढ़ने के लिए हर रोज ताजे समाचारों से अवगत कराते रहते है व लोग हर रोज वर्तमान पेपर पढ़ने को आतुर रहते हैं, बस यही हर मनुष्य को समाचार पढ़ने को आतूर करने वाली कला हि एक पत्रकार को सुपर पत्रकार बनाए रखती है।

लेखक/ कवि व पत्रकार यह क्षैत्र दोनो ही लिखाण काम के लिए प्रसिद्ध है परन्तु लेखक/कवि यह किसी एक विषय को लेकर एक दृश्य आंखो के सामने खड़ा कर उस पर लिखना शुरु करते है इस लेखन को अनेक बार शब्दों को अद्दल बद्दल व काट साट करते हुए रंग रुप राग अर्थ देने की कोशिश करते हैं जबकि पत्रकार के लिए इसका उल्टा चित्र होता है वह घटीत घटनाओं बढाचढाकर चटपटीत भाषा (चटपटें शब्दों) का प्रयोग करके बिलकूल नये अंदाज में हर रोज प्रातःकाल में चहा के समय में लोगों को वर्तमान पेपर (अखबार) के माध्यम से नये-नये ताजे समाचार पौरुस्ता है, संम्पादकीय लेख में भी पत्रकार अपनी लेखनी का सही उपयोग करता है, लोगों का ध्यान खींचता रहता है बस यही कला उसे सुपर पत्रकार /संपादक (वार्ताहर) बनाये रखती है।

लेखक/कवि अपनी नींद कम करके अनेक रातें काली कर एक ही जगह बैठकर दिमाग से सोच-विचार करके लिखान काम के माध्यम से लोगों में कायम बना रहता है व पत्रकार को तो भाग दौड़ बहुत करनी पड़ती है कारण जहा तहा घटीत घटनाओं को कँमेरो व कलम से साधारण मनुष्य की कल्पनाओं से परे रेखांकित करना होता है तब पढ़कर लोग कहते है वाह क्या समाचार को सही ढंग से पेश किया है बस यही कार्य शैली एक पत्रकार को यश दिलाती है।

एक सच्चे पत्रकार को किसी घटना के प्रसंग में सच्चाई लिखने में टच से मच (बिकना नहीं चाहिए) नहीं होना चाहिए व अपने पुरुषार्थ के बल से ही ईमानदारी का परिचय देना चाहिए यही लेखनी का धर्म होता है।

लेखक व पत्रकार दोनो का डिटीझल मीडिया व प्रिंट मीडिया से सम्बन्ध बना रहता है कहते है की कितना भी बड़ा लेखक हो उसे संपादक चाहिए व कितना भी बड़ा संपादक हो उसे लेखक चाहिए होता है तब दोनो को मिलाकर यह दो पहियो वाली गाडी चलती है साथ ही समाज के वरिष्ठ आदरणीयों का आशिर्वाद बना रहता है, साथ ही राजनीति के करता धरताओं से पहिसान भी रखनी होती है,पत्र,पत्रिकाओं के संम्पादक से सम्बन्ध बने रहते है कारण दोनों भी आपस में एक दुसरे के सहायक होते है यह सभी मान्यवर एक ही गाड़ी के दो पहिया के समान साथ साथ कार्य करते रहते है, कहते है की कितना भी बड़ा लेखक हो उसे संपादक चाहिए ओर संपादक को लेखक चाहिए होता है तभी पत्र, पत्रिकायें, पुस्तक, अखबार चल पाते है।

जय श्री विश्वकर्मा जी की
लेखक: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मो: 9421215933

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