दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं कान हूं कान
मैं कान हूं कान, पर मेरी दुख दर्द भरी कहानी भी आप आज जरुर सुन लेना जी, हा जी मैं हर पल आपकी सेवा मे हाजिर तो रहता हूं मगर मेरी यातनाओं की लिस्ट भी लम्बी चौड़ी है, सो आज आपके सामने पेश कर रहा हूं जी!!
✍️लेखक की कलम से………
मैं कान हूं कान, पर मेरी दुख दर्द भरी कहानी भी आप आज जरुर सुन लेना जी, हा जी मैं हर पल आपकी सेवा मे हाजिर तो रहता हूं मगर मेरी यातनाओं की लिस्ट भी लम्बी चौड़ी है, सो आज आपके सामने पेश कर रहा हूं जी!!
मेरी जीवन यात्रा की कथा तो किसी पशु, पक्षी, या चार पैर के जानवर को तो नही सुना सकता हूं, कारण वे सभी मूक प्राणी, मूके जीवो की श्रेणी मे आते है जो मेरी इस आत्म कथा को ना समझ सकते है ना ही जान सकते है इसी लिये मैं मेरी जीवन यात्रा की सुख दुख की कहानी सिर्फ इस आप जैसे ज्ञानी मानव जाति को ही सुना रहा हूं कारण इस पृथ्वी पर यह एक मात्र मानव जाति नामक जीव है जो मेरी जीवन कथा को ध्यान से सुन सकता है, समझ सकता है, मेरे कामों की तारीफ कर सकता है, मेरे दुख दर्द को समज सकता है, वह कही कही पर मेरे कथन पर हंसना भी जानता है, मेरे द्वारा किये गये अनेक कामों के लिये मन में घोर चिंतन भी कर सकता है, मगर दुख की बात यह है की इस मानव जाति ने कभी मेरे ऊपर घोर करके ध्यान नही दिया है, वह कम सुनाई देने पर मासीस की काडीया ही मेरे अंदर घुसाई है, मेरे दर्द को ओर बढाया है !!
यह मानव जाति ने सिर्फ बालों, गालों,आँखो, नाक व बालो को सुगंधी तेल,चेहरे पर क्रीम से सजाया है मगर खुद की सुंदरता के लिये हमे हमाल (खुन्टी के रुप मे) समजकर छेद कर बोझ वाहक समजकर लौंग, बालियां, झुमके आदि बनवाकर हम पर ही लटकाकर अपनी सुंदरता बढ़ाई है, चाहे वो मेल हो या फिमेल !!
आज तक हमने कभी किसी कवि या लेखक के मुंह से हमारे लिये कुछ अच्छा लिखा हो, या कविता लिखी हो, यह मेरे सुनने मे तो नही आया है ना ही कभी किसी ने हमारी तारिफ की है, हम देख नही सकते है तो क्या हुआ मगर कवि की कविताएं व लेख तो आये दिन सुनते रहते है, आप दुनिया वाले जो कुछ अच्छा या बुरा बोलते हो वो हम सब सुनते तो जरुर है, लोग अक्सर बुराइयाँ करते समय धीरे से कहते की बारीक आवज मे बोलो नही तो कोई सुन लेगा, दीवारों के भी कान होते है, यह बात सरासर गलत है, इस कथन का हम जोरतोर से खंडन करते है की दीवारों के कोई कान बान नही होते है, वो भी काम हमारे ही हक्क मे आता है जिसकी भूमिका हम ही निभाते है जी, मगर हम किसी से कुछ नही कहते है पर हमारा एक भाई मन जो बड़ा ही चचंल ( भदमाश ) है वह हम से यह बाते चुराकर औरों को बता देते है वह लड़ाईया लगवा देते है मगर हम किसी से कुछ नही कहना चाहते है!!
हमारे भाग्य मे तो श्रम ही जीवन है
वाली कथा ही लागु होती है, हम को किस गल्ती का प्रायश्चित (श्राप) भोगना पड़ रहा है इसका हमे भी नही पता है, हम दोनो कान जुड़वां भाई होते हुये भी एक दुसरे को आज दिन तक देख नही पाये, हर जीव के साथ हमें विपरित दिशा मे चिपका कर भेज दिया जाता है इस पृथ्वी पर, दुख सिर्फ इतना ही नही, हमे सब कुछ सुनने की जिम्मेदारी दे दी गई है, गालीयाँ हो या तालियाँ, बाते अच्छी हो या बुरी, जन्म दिन के गीत हो या फिर ब्याव शादी के मधुर गीत हो यह सब सुनने की ठेकेदारी हमे दी गई है, एक बात तो मैं भूल ही गया था की जब दो जन आपसे मे लड़ाई झगड़े करते है तब बोली जाने वाली गालियों से हमारे अंदर लगे पड़दे फड़फड़ा जाते है, इस दुख को अंदर का अंदर हम दोनो भाई सहन करते है मगर हद्द से ज्यादा होने पर लोग कहते है की दर्द बाँटने से कम होता है तब हम हमारे परिवार के सदस्यों के सामने यह दुख भरी बात कहने की हिम्मत करके आँखो से कहते है तो वे आँसू टपकाने लग जाती है, नाक से कहते है तो वो बहने लग जाता है, मुँह से कहू तो हाय हाय करके रोने लग जाता है, अब इसके आगे तो हम क्या करे, दुखड़ा किसे सुनाएं ❓
हमने तो मानव सेवा का व्रत लिये जो मिले वो काम करते रहते है, दिन हो या रात!!
पण्डित जी की जनेऊ हो, जांगिड मिस्त्रीजी की 4 एच नटराज कं.की पेन्सिल हो, जवानी मे रंग बिरंगे गोगल्स हो या बुढापे मे नजर के नम्बर वाले चश्मे हो, ओर अब एक नया ट्रेन्ड चल पड़ा है 4 g मोबाईल का एयरफोन भी हम ही सम्भालते है, वैष्विक महामारी आई तो मास्क भी हम पर चढ़ा दिया गया है!! यातनाओं से भरा यह हमारा सफर है।
हमारी कहानी (आत्म कथा) इतने मे समाप्त नही होती है जब आप स्कूल मे पढ़ते थे तब आपका दिमाग कम चलता था तब अध्यापक जी ने हमे (हम कानो को) मरोड़ा था, सिर के बाल कटवाने हेयर स्लून मे नाई की दुकान मे गये तब बाल काटने के चक्कर मे हम पर भी कट लगते रहे है तब नाई महाशय जी ने हमे डेटाँल लगाकर पुचकार दिया है वह ऊपर से कहते है कुछ नही थोड़ा सा कट लग गया है, ठीक हो जायेगा जी, फटकरी लगाकर उपर से स्नो पाउडर की फूवार कर दी जाती है, ओर तो ओर जब दो इंसान लड़ते है तब जोर से पड़ने वाली थप्पड़ आधी गाल सहन करता है वह आधी मुझे (कान) ही सहनी पड़ती है मेरे भाई इन सारी बातो का मेरा क्या देना लेना है, सच्छ बोलकर कभी मेरी बाजु भी लिया करो जी, पढ़ाई मे दिमाग कम चले आपका, बाल काटने के शक्कर मे मुझ पर कट लगाना, लड़ाई झगड़े के समय थप्पड़ की मार मुझे खाने की क्या जरुरत थी ❓वो तो सब आपकी गल्तीया थी…….
लोग मुझे कान नही जीवन भर खुन्टीया ही समझते रहे है, जो मन आया मुझ पर टांगते रहे है, अब मैं (कान) संसार के सभी लोगों से निवेदन करता हूं की ओर कुछ टाँगना, लटकाना हो तो ले आओ मेरे भाई, हम दोनो जुड़वा भाई तैयार है आपकी सेवा मे………..
चेतावनी
एक पुरा दिन दोनो कानो मे रुई दबाकर डाल दो फिर अपने रोज की दिनचर्या चलाकर देख लेना तब आपको कानो का महत्व क्या होता है, पता चल जायेगा जी, फिर सबसे कहते बैठोंगे की कानो के बिगर जीवन अधूरा है !!
जाते जाते लेखक/कवियों से एक आदेश तो नही पर, एक निवेदन करना चाहूंगा की आपने शरीर के हर अंग पर बहुत कविताएं /लेख लिखे है, हाथ जोड़कर मेरी भी यह अर्जी जरुर सुन लेना जी वह जब भी आपको समय मिले मूझ पर भी जरुर लिखने की कृपा करना की जीवन मे कान का होना कितना जरुरी है ❓
आज आपने मेरे ऊपर जो कुछ लिखा वो मैने सब सुना है, बड़ी खुशी हुई है, आपको (लेखक को) मेरी तरफ सू बधाई, शुभकामनाएं 🙏🙏
मैं कान हूं कान
मैं नही तो आपका जीवन अधुरा है!!
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🙏जय श्री विश्वकर्मा जी री सा 🙏
लेखक: दलीचंद जांगिड सातारा (महाराष्ट्र)
मोबाईल: 9421215933
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