दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं हूँ एक मारवाड़ी

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मैं हू एक मारवाड़ी
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आप हमे मारवाड़ी कहते हो
मन को अच्छा लगता है जरुर
यह हमारे क्षैत्रीय भाषा से नामकरण है
जो हमारा जन्म भूमि से नाता जोड़ता है
आप तो याद रखकर यह भी कह देते
जहां नही जाएं रेलगाड़ी
वहां पहुंच जाएं मारवाड़ी
मैं बताता हूं क्या होता है मारवाड़ी….?
जो हालतों से हारे नहीं
जो हर परिस्थिति को मार दे सके
पानी की कमी, धन्धे की कमी
धन की कमी, बिजली की कमी
मजदूरी मिली नहीं पेट भर
फिर भी जिन्दा रहने की तमन्ना लिए
दिन रात कर दे एक, मेहनत करे भरपूर
कष्ट कठिनाइयों को जो हंसते हंसते
प्रति दिन गले लगाता है
वो होता है एक मारवाड़ी
हा यह भी सच्च है की
अपने परिश्रम की परिकाष्ठा से
हर मारवाड़ी दुकानदार होता है नहीं
लोंगटर्म की सोच रखता है मन में
कुछ कुछ विरले उत्पादक होते है महान
जन्मे मारवाड़ के कौने कौने में
नाम देश विदेश में कमाते है
कुमार मंगलम बिरला, राहुल बजाज
लक्ष्मी निवास मित्तल, ओर भी अनेक
लिस्ट बड़ी लम्बी चौड़ी है
प्रगति की भागीदारी हमारी
डंका बजाये देश विदेश में
यह होता है मारवाड़ी….
जहां नहीं जाएं बैलगाड़ी
वहा पहुंच जाएं मारवाड़ी
इसी शलॉग्न के लिए….
मारवाड़ी मेहनत करे दिन-रात..
यह होता है मारवाड़ी……
महाराष्ट्र की धरती पर विश्वकर्मा मंदिर बने अनेक……

जय श्री ऋषि अंगिरा जी की
जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
लेखक/कवि: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र

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