दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: गांवों से शहर की ओर
भारत की आजादी के बीस बर्ष बाद ज्यो ही देश मे धीरे धीरे प्रगति का दौर शुरु हुआ व जन संख्या का बढना शुरु हुआ तब गांवो मे खेती बाड़ी की जमीन का भाई भाई का बटवारा होता गया, व थोड़ी खेती बाड़ी से कम अनाज के उत्पादन की वजह से जीवन निर्वाह करना मुश्किल होता गया था, यही गांव छोड़कर शहर की ओर जाने का मुख्य कारण था!
उपर की चित्रावली ही इस ग्रामिण जनता शहर की ओर…… के सफर को दर्शाने के लिये काफी है जी!
यह कहानी है उस हर समाज की जो चालीस, पच्चास बर्षो से नित्य निरन्तर गांवों से शहर की ओर कूच कर रहे है जो गावों मे पैत्रिक काम धन्धे धीरे धीरे कम हो रहे है या फिर बंद पड़ने की कतार पर है इस कारण अपनी आजिविका चलाने के प्रयास हेतु गांवों से शहरों मे जाकर अपना पैत्रिक काम धन्धा करे या फिर पढ़ा लिखा है तो नोकरी करे!
भारत की आजादी के बीस बर्ष बाद ज्यो ही देश मे धीरे धीरे प्रगति का दौर शुरु हुआ व जन संख्या का बढना शुरु हुआ तब गांवो मे खेती बाड़ी की जमीन का भाई भाई का बटवारा होता गया, व थोड़ी खेती बाड़ी से कम अनाज के उत्पादन की वजह से जीवन निर्वाह करना मुश्किल होता गया था, यही गांव छोड़कर शहर की ओर जाने का मुख्य कारण था!
इसी समय मे हमारे घर के बूजर्गो की आयु जीवन के अंतिम चरण मे प्रवेस कर चुकी थी वह उनके द्वारा किये जाने वालो पैत्रिक कार्यों का चलन भी गांवो मे कम हो चुका था इस कारण नव युवा के दिमाग से पैत्रिक काम नही करते हुए शहर मे जाकर अपनी किस्मत अजमाने लगे थे वह दौर आज वर्तमान मे क्रमश: शुरु है!
शहर मे जाकर अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करते रहे, कोई पैत्रिक काम को नये जमाने मे ढालकर कर रहा था कोई उत्तम शिक्षण करके नोकरी की राह अपना ली थी!*. *धीरे धीरे समय बितता चला गया तब तक हर कोई शहर मे किराया के मकान मे रह रहा था, जैसे ही अपनी आय बढ़ गई तो आन्तरिक मन ईच्छा भी जाग्रत हुई की मेरा भी इस शहर मे आशियाना (मकान) हो, इसी प्रबल ईच्छा ने आगे का रास्ता खोल दिया।
किसी ने प्लाँट खरीदी करके अपनी सुविधा के अनुचार मकान का निर्माण करवाया, तो किसी ने तैयार मकान ले लिया, अब नव युवा पिढ़ी पढ़ाई मे अग्रसर है वह नोकरी मे प्रवेश कर रहे, कुछ नव युवा व्यौपार मे, या फिर किसी प्रकार का उत्पादन मे अपना किस्मत अजमा रहे है, यही सोच आज हर युवा को शहर की ओर आकर्षित कर रही है इसी कारण शहर बड़े ही आबादी का कारण बन रहे है!! जांगिड़ समाज भी गांवों से शहर की ओर प्रस्थान करने मे अग्रसर है, हर बड़े शहरों में ग्रामिण भागों से आकर स्थाई रहवासी हो गये है व संख्या बर्ष, महिना, दिन दिन बढ़ रही है!!
मैं तो पहले से यही कहता आया हूं की जन्म स्थान को छोड़कर किसी बड़े शहर की ओर हर किसी को अपनी किस्मत आजमाने के लिये 400 किलोमीटर, 800 किलोमीटर या 1200 किलोमीटर दूर किसी बड़े शहर की ओर अवश्य प्रस्थान कर लेना चाहिये, इसी मे आपका भाग्य छुपा हुआ है जी, पैसा कमाना है तो बड़े शहर ही जाना पड़ेगा कारण पैसा गांवों में नहीं है पर शहरों में पैसा बहुत है, हर टाईप के काम धन्धे की सहल – पहल है!
जन्म स्थान से स्थालान्तरित होना ही प्रगति का स्श्रौत् है!!
वर्तमान मे हर युवा उच्चतम शिक्षा ग्रहण कर रहा वह उसका शहर ही केन्द्र बिंदू है, गांवों में उसके करने लायक कोई काम बचा ही नहीं है!!
भारत के हर शहरों में जांगिड समाज के बंधू व्यौपार, नौकरी या कारखानेदार में व्यस्त है वह अच्छी कमाई कर रहे है यह हमारे लिए एक गर्व की बात है जी।
चले हर युवा गांवों से शहर की ओर…..
लेख लिखने मे कोई त्रृटी हुई होवे तो क्षमस्व……
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जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
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लेखक: दलीचंद-जांगिड़ सातारा
श्री विश्वकर्मा मंदीर सातारा (महाराष्ट्र)
मो: 9421215933
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Gyan Jyoti Darpan
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