दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: विषमता खाँडमिला एक जहर ही है

अमीरी-गरीबी यह तकदीर में लिखी हस्त रेखाओं का फर्क हो सकता है पर समाज में इसे रुजवात ना होने दिया जाए तो ही समाज की मर्यादा टिक पायेगी वर्ना समाज के प्राचीन रितीरिवाजों वह "समाज जाजम" की मर्यादा लूप्त हो जाएगी।

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 लेखक की कलम से……
जाति एक समाज एक पर रुपयों पैसों से पैदा हुई विषमता यह खाँड मिला एक प्रकार का विष ही है जो समाज में भेद भाव करने पर तुला है, यह सभ्य समाज के लिए गौरव की बात नही है। अमीरी-गरीबी यह तकदीर में लिखी हस्त रेखाओं का फर्क हो सकता है पर समाज में इसे रुजवात ना होने दिया जाए तो ही समाज की मर्यादा टिक पायेगी वर्ना समाज के प्राचीन रितीरिवाजों वह “समाज जाजम” की मर्यादा लूप्त हो जाएगी।

मुझे तो डर लग रहा है की उन मध्यम परिवारजनों को कौन लिस्ट में शामिल करेगा, कौन आमंत्रण देगा जो है तो अपने ही समाज के है पर रुपया पैसा कमाने की दौड़ में पीछे रह गये है अब वर्तमान में एक अमीरों का नया झूंड तैयार हुआ है जिसे हाई प्रोफाईल सोसाईटी के नाम से जाना जाता है इन हाई प्रोफाईल के लोग अपनी एक अलग से सोसायटी (दुनिया) बनाकर धन के बल पर शहर से दूर रेसाँर्ट बुक कर लाखों करोडों रुपये की “ब्याव शादियाँ ” रिसेप्शन कर रहे,”बर्थ डे” मना रहे है,सब आंमत्रित लोगों को अलग अलग कमरें दिये जाते है वह सामाजिक, सामुहिक कार्यक्रम के समय मोबाईल पर संदेश देकर काँम्फरेन्स हाँल में बुलाया जाता है, इस तरह हरेक मेहमानों को अलग अलग बंद कमरे रुकने के लिए देकर यह स्नेह मिलन समारोह कैसे कह सकते है वह प्रेम भाव में कैसे वृध्दी होगी…….? जिनके बच्छों को नौकर नौकरानीयां सम्भाल रहे है, उन बच्छों को क्या माँ वात्सल्य दे पाएगी व पिता प्रेम दे पाएगा……..? प्रश्न भविष्य कालिन फिर यही आकर ठहर जाता है फिर यह संतानें कैसी होगी, कैसी होगी नई पीढ़ी आप ही सोच लो इसकी मुझे अभी से चिंताएं हो रही है की आगे चलकर कैसा समाज (लोक सोसाइटी) तैयार होगा व किस तरह की समाज व्यवस्थाएं होगी,मध्यम वर्ग का क्या हाल होगा वह गरीबी में चल रहे परिवारों कहा जगह मिल पाएगी, कौन इनको आंमत्रित करेगा यह सब सोचनीय उर्वरित विषय है,भविष्य में समाज की व्यवस्थाए कैसे चलेगी यह सब प्रश्न चिन्ह ही है, चिन्ता का विषय है इस पर समाज के अगुआई करने वाले महाशय सोच विचार जरुर करे वह विषमता को मिटाकर समानता लाने की भरपुर प्रयत्न करने चाहिए ताकी समाज एक जीव संगठित रह सके वह भेद भाव की दीवारें टूट जाए इस प्रकार का विचार – मंथन होना चाहिए ऐसा मुझे प्रतित हो रहा है इस पर जरुर विचार मंथन करके समाज को एक नई दिशा देनी चाहिए भविष्य के लिए…….?

आशंका

या फिर सब कुछ ऑनलाइन हो जाएगा, अब यह गेजेडज् के साथ जीने वाली पीढ़ी कैसी होगी, या फिर हाई प्रोफाइल सोसाइटी को भी पीछे छोड़कर अपनी अलग ही दुनिया बसायेगी क्या यह समाज में विषमता (अमीरी गरीबी) की खाई ओर बढती ही जाएगी या फिर पूर्वजों के रिती रिवाजों को निगल जाएगी या फिर मोबाईल सबकों मानसिक रोगी बनाकर रख देगा या फिर पूर्वजों ने बनाई सामाजिक व्यवस्थाओं को बिगाड़कर रख देगा यह सब नई पीढ़ी के सामने प्रश्न चिन्ह हि है……. ❓

इसीलिए मैं कहता हूं कि….

विषमता एक प्रकार का खाँड मिला विष ही है जो लगता तो अच्छा व मिठ्ठास है पर प्राचीन पूर्वजों की कार्यप्रणाली को धीमी गति (सल्लो पाँइजन) से खाए जा रहा है वह अमिरी व गरीबी के बीच एक खाई तैयार कर रहा है जो आगे चलकर भविष्य में रिश्ते बनाने में रुकावटें पैदा करेगा……
त्रुटी के लिए क्षमस्व 

जय श्री ऋषि अंगिरा जी महाराज की जय हो
लेखक: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मो: 9421215933

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2 Comments
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