लेखक नरेंद्र शर्मा परवाना की कलम से: दिव्य गुणों का विश्वविद्यालय थे बाबा गुरबचन सिंह
मेरे 60 वर्ष के जीवन में वह क्षण मुझे रह रह कर याद आता है। जब मेरे परम श्रद्धेय परम पूजनीय सतगुरु गुरबचन सिंह का नश्वर शरीर विघटनकारी शक्तियों ने हमसे जुदा किया।
सोनीपत/जीजेडी न्यूज: निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह महाराज मानव जगत के लिए, धर्म-अध्यात्म के लिए, मानवीय संवेदनाओं के लिए, धर्म संस्कृति के लिए और सही मार्ग पर इंसान को चलने की शिक्षा देने वाले एक महान व्यक्तित्व थे।
जिनका स्मरण करने वालों को दिव्य ज्ञान का उजाला मिलता है और एक अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है। मेरे 60 वर्ष के जीवन में वह क्षण मुझे रह रह कर याद आता है। जब मेरे परम श्रद्धेय परम पूजनीय सतगुरु गुरबचन सिंह का नश्वर शरीर विघटनकारी शक्तियों ने हमसे जुदा किया। उसके बाद एक यात्रा निकली जिसके अंदर हजारों हजारों की संख्या में एक महान विभूति के प्रति समर्पित नर नारी शामिल हुए। मैं भी उसमें शामिल हुआ था। जिसमें लोगों ने अपने आपको अपने गुरु को समर्पित करने के लिए हस्ताक्षर किए थे।
यह एक लंबा पैदल चलता हुआ काफिला तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कोठी पर पहुंचा था। विरोध जताने के लिए निकला शांति मार्च एक अपना अलग अंदाज लिए हुए था, हजारों आंखे नम थी। जो भी इनके चाहवान, इनके प्रति समर्पित श्रद्धालु थे, वह हस्ताक्षर कर रहे थे कि हम अपनी जान न्योछावर करते हैं। उसी दौरान मेरे सद्गुरु के प्रति मैंने एक गीत की एक रचना की थी कि गुरबचन का जीवन तो एक अमर कहानी है। सोने के अक्षर से जो लिखी कहानी है।
सतगुरु बाबा गुरबचन सिंह संत निरंकारी मिशन के तीसरे गुरु थे, वर्ष 1962 में उनके पिता और बाबा अवतार सिंह द्वारा उन्हें संत निरंकारी मिशन का अगला अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। और 24 अप्रैल 1980 में यह नश्वर शरीर दिव्य, भव्य, ब्रह्म रूप में विस्तार ले गया। अखंड भारत की ऋषि मुनियों की इस धरा पर 10 दिसंबर 1930, पेशावर, (वर्तमान में पाकिस्तान) माता बुधवंती जी और बाबा अवतार सिंह जी के घर में एक दिव्य ज्योति को लेकर गुरबचन सिंह के रूप में उजाला प्रगट हुआ। जिनको आज जब जब भी कोई स्मरण करता है उसके सामने आती है मानवीय दिव्य गुणों से अलंकृत एक व्यक्तित्व की सुंदर सी झलक, जिसने अपने जीवन को मानवीय सदभावनाओं के लिए आखरी सांस तक लगाया। अपने रक्त की एक एक बूंद के साथ में मानवता को सींचा, अपने कर्म की खुशबू से मानवता को महकाया, जिसने सृष्टि को पावनता, पवित्रता, विनम्रता, विनयशीलता, प्रेम, परोपकार, स्नेह, सहजता, रचनात्मकता, सृजनात्मकता, गुणात्मकता, तीव्रता के साथ सकारात्मकता, सज्जनता, शालीनता भरी जिंदगी सृजित करने का दिव्य संदेश दिया। संदेश के साथ-साथ स्वयं दिव्य गुणों से अलंकृत हुए, इन्हें आत्मसात किया।
नमन है ऐसी दिव्य विभूति को, नमन है ऐसे महान स्वरूप को, नमन है ऐसे समाज की बुराइयों को खत्म करने वाले कर्मयोद्धा को, नमन है ऐसे धर्म संदेशवाहक को, नमन है ऐसे मिशन को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाने वाले महान सद्गुरु को, नमन है ऐसे दिव्य पुरुष को जो सृष्टि में कभी-कभी अवतरित होते हैं, अपने गुणों को जागृत करते हैं। अपने कर्म की खुशबू से सृष्टि को सुगंधित करते हैं। अपने ज्ञान के उजाले से जगत को प्रकाशमान करते हैं। ऐसे महान मेरे परम श्रद्धेय, परम आदरणीय, परम पूजनीय, महान और दिव्य गुणों का विश्वविद्यालय सद्गुरु बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज हैं। जो पूरी सृष्टि के लिए एक ऐसा सुंदर स्वरूप देकर गए ।जिन्होंने इस मानवता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। जिन्होंने अपने भक्तों को अपने रक्त की एक-एक बूंद से मानव को शिक्षित किया। जिन्होंने अपने एक एक सांस के साथ हमें जीवन जीने की राह दिखा दी। जीवन जीने की कला सीखा दी। जीवन जीने का अंदाज दे दिया, इस महान दिव्य पुरुष ने घरों को स्वर्ग से सुंदर बना दिया। मानव जगत को दिव्य गुणों से अलंकृत कर दिया। मैं ऐसे महान दिव्य स्वरुप को नमन करता हूं, नमन करता हूं, नमन करता हूं।
लेखक : नरेंद्र शर्मा परवाना
संपादक
ज्ञान ज्योति दर्पण
266/16 गांधीनगर पांची रोड गन्नौर, जिला सोनीपत हरियाणा (भारत) 131101
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