चंडीगढ़: सैनिक स्कूलों का निजीकरण पर सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने जताई चिंता
हुड्डा ने ‘द रिपोर्ट्स कलेक्टिव’ की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए सवाल उठाया कि 62% नए सैनिक स्कूलों का संचालन भाजपा और आरएसएस से जुड़े लोगों को क्यों सौंपा जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, जिन निजी संस्थानों ने सैनिक स्कूल सोसायटी के साथ समझौता किया है, उनमें से कई का संबंध भाजपा और आरएसएस के सहयोगी संगठनों, नेताओं, और उनके करीबियों से है।
- सैनिक स्कूलों को पीपीपी नीति पर खोलने की नीति को तुरंत रद्द करे सरकार – दीपेन्द्र हुड्डा
- पहले अग्निपथ योजना लाकर देश की फौज को कमजोर किया, अब सैनिक स्कूलों के बुनियादी तंत्र को भी बर्बाद कर रही सरकार – दीपेन्द्र हुड्डा
- सरकारी समर्थन और प्रोत्साहन के बावजूद नये सैनिक स्कूलों की फीस का ढांचा असमानता की खाई पैदा करने वाला – दीपेन्द्र हुड्डा
चंडीगढ़, (अजीत कुमार): सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने सैनिक स्कूलों को पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल पर खोलने की नीति को तुरंत रद्द करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि पहले अग्निपथ योजना के जरिए देश की फौज को कमजोर किया गया और अब सैनिक स्कूलों के बुनियादी ढांचे को भी बर्बाद किया जा रहा है।
हुड्डा ने ‘द रिपोर्ट्स कलेक्टिव’ की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए सवाल उठाया कि 62% नए सैनिक स्कूलों का संचालन भाजपा और आरएसएस से जुड़े लोगों को क्यों सौंपा जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, जिन निजी संस्थानों ने सैनिक स्कूल सोसायटी के साथ समझौता किया है, उनमें से कई का संबंध भाजपा और आरएसएस के सहयोगी संगठनों, नेताओं, और उनके करीबियों से है।
वर्तमान में देश में लगभग 33 सैनिक स्कूल हैं, जिन्हें रक्षा मंत्रालय के अधीन स्वायत्तशासी निकाय सैनिक स्कूल सोसायटी (एसएसएस) द्वारा संचालित किया जाता है। ये स्कूल नेशनल डिफेंस अकादमी और इंडियन नेवल अकादमी में प्रवेश के लिए विद्यार्थियों को तैयार करते हैं। हुड्डा ने कहा कि बीजेपी सरकार की नई नीति, जिसके तहत 62% नए सैनिक स्कूलों को भाजपा और आरएसएस से जुड़े लोगों को सौंपा जा रहा है, शिक्षा के लिए हानिकारक साबित हो सकती है।
2021 के बजट में केंद्र सरकार ने पूरे भारत में 100 नए सैनिक स्कूल स्थापित करने की योजना की घोषणा की, जिससे निजी क्षेत्र के लिए दरवाजे खोल दिए गए। नई नीति के तहत, कोई भी स्कूल जो एसएसएस द्वारा निर्धारित बुनियादी ढांचे, वित्तीय संसाधनों, और कर्मचारियों की शर्तें पूरी करता है, उसे सैनिक स्कूल के रूप में मंजूरी मिल सकती है। इस शर्त के तहत भाजपा और आरएसएस से जुड़े संगठनों के लिए सैनिक स्कूल खोलने के दरवाजे खुल गए।
रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि सरकारी समर्थन के बावजूद नए सैनिक स्कूलों की फीस संरचना में असमानता है। उत्तर माध्यमिक कक्षाओं के लिए वार्षिक शुल्क 13,800 रुपये से लेकर 2,47,900 रुपये तक हो सकता है, जो शिक्षा में असमानता की खाई को बढ़ाता है।
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