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काव्यलोक

घेवरचन्द आर्य पाली की कलम से: मातृ सेवा का आत्मिय आनन्द

लेखक: घेवरचन्द आर्य पाली दिनांक 21 जून अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस सुबह नौ बजे मैने प्रेक्षा को आवाज दी प्रेक्षा......वह दोडी हुई आई। तेरी दादी ने अन्दर पेशाब कर दिया, कपडे परिवर्तन करने है, मैने कहा। प्रेक्षा आज्ञा का पालन करते हुए धुले…
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दीपक आहूजा वालों की कलम से: वास्तविकता का आभास

वास्तविकता का आभास सरलता से होता है, वास्तविकता का आभास, करने वाला ईश्वर है, क्यों न करूँ फिर विश्वास। कुम्हार का हाथ चले चाक पे, निरंतर अविरल, कृपानिधान की कृपा है, कुम्हार दिखे सफल। दो हाथों के कृत की माया से, संसार वशीभूत, अपने आप…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं हूँ एक मारवाड़ी

मैं हू एक मारवाड़ी .................................... आप हमे मारवाड़ी कहते हो मन को अच्छा लगता है जरुर यह हमारे क्षैत्रीय भाषा से नामकरण है जो हमारा जन्म भूमि से नाता जोड़ता है आप तो याद रखकर यह भी कह देते जहां नही जाएं रेलगाड़ी…
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दीपक आहूजा वालों की कलम से: पथिक

पथिक पथिक एक है, और पथ हज़ार, दुविधाग्रस्त है, मन का संसार। अमर शाश्वत, क्या इस जग में, विषय विकार पड़े, हर पग पे। कठिन हो गई, जग की हर रीत, कैसा आलिंगन, कैसी ये प्रीत। अंतर्मन में उठता, गहन सवाल, छोटी सी देह में, हृदय विशाल। अपार…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कवि को कभी अलविदा मत कहना

कवि को कभी अलविदा मत कहना .................................................... कवि तन से बुढ़ा भले ही हो जाएं कवि कविताओं से हर दिन हर पल यौवन पाता रहता है समय का रथ चलता रहता है कवि कविताओं के रस में पल पल बहता रहता है कवि का मन…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस “करो योग रहो निरोग”

          आरोग्य विषय पर नेक सलाह आज अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस का नोवा वर्ष है, योग शरीर को तंदुरुस्त रखने के साथ साथ मन का भी शुध्दीकरण करता है प्रेम भावना बढाता है  *"सारा विश्व मेरा कुटुंब है मैं इस परिवार का सदस्य हूं यह भावना भी अंतर मन…
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घेवरचन्द आर्य पाली की कलम से: बाढ़ और लक्ष्मी की विरह वेदना

लेखक - घेवरचन्द आर्य पाली 18 जून 2023 को पाली में रात भर जोरदार बारिश आई, जो अब भी जारी है। बाहर वर्षा हो रही है। बादल गरज रहे हैं। प्रातः 5 बजे उठा और सीधा माँ के पास गया, माँ ने बिस्तर पर ही पेशाब कर दिया है। जिससे उनके कपडे गीले हो गये…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: प्रार्थना समाज प्रगति की लिखता हूं

प्रार्थना समाज प्रगति की लिखता हूं ................................................................. एक समाज मुख्या के मन के भाव, कवि कलम लिख देती है.... प्रार्थना समाज प्रगति की.. समाज विकास के लिए, विश्वकर्मा जी से वरदान मांगता…
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दीपक आहूजा वालों की कलम से: नाचते मोर

नाचते मोर सावन तो नहीं है, फिर मन में मोर क्यों नाचते, मृदंग बजा-बजा कर, दिलों में सुर क्यों साधते। ऋतु तो है हेमंत की, फिर क्यों स्मृतियाँ गर्म हैं, शिशिर की प्रतीक्षा में, इस जीवन का मर्म है। तृष्णा का यह चक्र, हर मनुष्य में वास…
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दीपक आहूजा वालों की कलम से: प्यार की पराकाष्ठा

प्यार की पराकाष्ठा क्या प्यार की भी कोई, पराकाष्ठा होती है, यह तो इन नैनों की, हरदम जलती ज्योति है। क्षितिज पर दिखता है, प्रेम अनूठा अनुपम, विश्वास, सम्मान, प्यार का, यह है संगम। जैसे पृथ्वी और आकाश का, हो रहा विलयन, वैसे ही…
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