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काव्यलोक
मुल्क राज आकाश की कलम से : सर्दी के मौसम में भाई बाहर निकलना संभल संभल
सर्दी
सर्दी के मौसम में भाई बाहर निकलना संभल संभल
ऊनी कपड़े पहन के रखना और पहनना तुम कंबल
इस मौसम में सूरज बाबा, कमजोर हो जाते हैं
चंदा मामा चिढ़ा चिढ़ा कर इठलाते मुस्काते हैं
मौज है रहती खाने की और मिलता है दूध बादाम
गाजर का…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से : पैसा व सत्ता कुछ बर्षो के मेहमान
महाराष्ट्र: पैसा व सत्ता यह कुछ बर्षो के ही मेहमान होते है, साधारण यही समाज में देखने को मिलता है, उदाहरणार्थ जवानी कुछ बर्षों तक की मेहमान होती है, फिर चली जाती है जो कभी दुबारा लौटकर नही आती है, अगर कोई इस समय का सद्पयोग कर ले तो उतार…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से : आवाज बुलंद करो
आवाज बुलंद करो
एक ही नारा है हमारा
अब तो हमें पानी चाहिए....
हम सब एक है
हम सब साथ साथ है
आवाज बुलन्द करो
हमे पीने का पानी चाहिए....
हमें जीने का मानवी अधिकार
आम आदमी का चाहिए
कलकारखानों की निर्मिती चाहिए
ईन दो हाथो को काम…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से : चिन्ता करता हूं भावी पीढ़ियों की
नई दिल्ली: पुणे में हुए जांगिड ब्राह्मण समाज के विश्वकर्मा मंदिर के हाँल के पडाल में महासभा का महा मेळावा (पांच जिलो का स्नेह मिलन समारोह) में कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों ने एक अनोखी कविता जो राजस्थान में पानी की कमी के चलते केन्द्रीय…
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कृष्ण कुमार निर्माण की कलम से : तुम्हारी यादें
तुम्हारी यादें
तुम्हारी यादें
आती रहती हैं निरन्तर
अनवरत
कभी सूखी घास की तरह
कभी हरी दूब की तरह
कभी तूफानों सी टकराती हैं
कभी लहरों सी आती हैं
कभी छुअन बन जाती है
कभी रुदन बन जाती हैं
पता नहीं क्यों.....
जलाती रहती हैं मुझे…
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कृष्ण कुमार निर्माण की कलम से: हरियाणवी गीतिका भाग-2
संवेदनाओं से परिपूर्ण समाज नहीं है।
शहर में आंसू बहाने का रिवाज नहीं है।।
वक्त की लाठी पड़ती है बड़े ही जोर से।
याद रखना उसमें होती आवाज नहीं है।।
कल होगा यकीनन गाँठ बाँध कर रख।
मिलेगा भरोसे से तुझे जो आज नहीं है।।…
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कृष्ण कुमार निर्माण की कलम से:हरियाणवी गीतिका
हरियाणवी गीतिका
इश्क भी एक बीमारी लिख दये।।
या सबत्ये भुंडी न्यारी लिख दये।।
इब्ब पेट-पाप सै सबक्ये भीतर।
माणस की हुश्यारी लिख दये।।
नेता जी की सुण इब्ब योग्यता।
झूठ-झाठ चोरी जारी लिख दये।।
कर्म जिस्से इब्ब…
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कृष्ण कुमार निर्माण की कलम से: मरे हुए मर्द
मरे हुए मर्द
ये स्त्री है
जो सब सहकर भी ज़िंदा है
अरे ओ!!!
मर्दानगी का दम्भ भरने वालों
एक बार स्त्री का
हिसाब करके ही दिखा दो
जैसे रहती है स्त्री
वैसे जीवन भर नहीं
मात्र दो दिन जीकर दिखा दो
मान जाएंगे तुम्हारी मर्दानगी को…
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