Browsing Category

काव्यलोक

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: लक्ष्मण रेखा का पालन करता हूं….

✍️ लेखक की कलम से.......... सब लोग धन की देवी को प्रणाम करते है, हम कवि लोग माँ सरस्वती की "पूजा उपासना" करते है, लोग उगते सुर्य को नमस्कार करते है, हम ढ़लते सुर्य को भी प्रणाम करते है, और तो और बस्ती से दूर विराने में पहाड़ों की तन्हाई…
Read More...

मारवाड़ी कवि प्रकाश चन्द जांगीड़ की कलम से: अमल मती लीजो

अमल मती लीजो अमल री सभा, गोळ करे डबा। टेम पास रो जुगाड़, घणो करे ओ विगाड़। आगा रिजो भाइयों, लोगों ने लुगाइयों। रती-रती लीजो मती, घणी करो ओ क्षति। घालेला परो गती, बूजेला परी बत्ती। लोगों रे की नी जावे, उनोने तो अमल भावे।…
Read More...

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: आप बीती सुणाऊं मारी बातड़ली

आप बीती सुणाऊं मारी बातड़ली ✍️ कवि कलम् लिख देती है एक हास्य रचना  मैं गयो शहर रा एक ब्याव में सजधज ने कपड़ा नवा पैरने सगळा खाणो खावे खड़ा खड़ा बूट चप्पल पग में पैरने मैं फस गयो ऊभा खाणा में.... सगळा टेबल ऊपर नजर दौड़ाई…
Read More...

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: प्रारब्ध का शेष फल

प्रारब्ध का शेष फल दुख भले ही लाख हों, तो क्या मुस्कुराना छोड़ दूं..... कंठ से दबी आवाज निकल रही है जरुर, तो क्या कविता गाना छोड़ दूं...... हो सकता है ईश्वर ने भेजा प्रारब्ध का शेष फल भुगत रहा हूं, तो क्या साहित्य समाज प्रगति का लिखना…
Read More...

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस

कवि दलीचंद जांगिड सातारा: महिला अन्तराष्ट्रीय दिवस पर क्या क्या लिखू, कलम् मेरी मुझ से पुछ रही है.....मेरी दुनिया की प्रथम गुरु "माँ" के गुणगान लिखु, जिसने मुझे जन्म दिया, अंगूली पकड़ कर चलना सिखाया, सुसंस्कृत बनाया या "बेटी" करुणामय ह्रदय…
Read More...

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: अंधेरे से प्रकाश की ओर

गुरु के चार प्रकार आध्यात्मिक गुरु गुरु ब्रह्मा , गुरु विष्णु , गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात ब्रह्म , तस्मै श्री गुरुवे नम: यह गुरु एक प्रकार का गुरु मंत्र देते है वह शिष्य को आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करके भक्ती के तौर तरिके सिखाकर…
Read More...

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: माँ की ममता भूले नही

माँ की ममता भूले नही ====================== माँ मेरी पालनहार है माँ ही प्रथम गुरु है मेरी माँ ही पाठशाला है मेरी माँ ही पेन्सिल है, रबड़ है माँ ही अंधेरे से निकालकर उज्जीयारे में ले जाती है मेरी दुनिया तेरे आंचल में स्वर्ग…
Read More...

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: स्वदेशी की पुकार

स्वदेशी की पुकार ======================= ओ परदेशी ओ परदेशी......        हमे भूल ना जाना कभी तुम भी स्वदेशी थे       दूर देश जाकर हो गये परदेशी कभी हम साथ साथ         गांव में खेला करते थे सुबह लड़ाई करते        …
Read More...

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कविता की चादर

कविता की चादर *************** मैं जिसे ओढ़ता हूं वो कविताओं की चादर होती है उस पर लिखी कविताएं ह्रदय से ढूंढ लाता हूं वो कविताएं सुनाता हूं वो ही मेरी पहिचान होती है वो ही मेरी पोशाख है कविता लिखने जंगल मे जाता हूं कभी कभी…
Read More...

कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: गतिमान युग का पदार्पण

गतिमान युग का पदार्पण मैं निकला सुकुन लेकर        एक शकून की तलाश में  गांव गलियारे से निकला        एक शहर की ओर.... काम धन्धे की भरमार हो        कुछ लोग मेरे साथ हो रुपयों की तलाश में       रिश्तें नाते पीछे छूट गएं जीवन…
Read More...