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काव्यलोक
कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: राजस्थान दिवस
राजस्थान दिवस
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मैं राजस्थान रा सगळा लोग
प्रदेश रहकर मनाओ
राजस्थान दिवस गणी खुशी सू
मरुधर मारो देश
सिदो सादो मारो वेश
भोळा भाळा लोग अठै
मिठा बोले मोर जठै
उण देश रो मैं वासी हूं
पाली रो मैं…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: स्वाभिमान ही सम्पत्ति हर मानव की
✍️ लेखक की कलम से....
जानदार, शानदार, ईज्जतदार यही है मेरी पहिचान......
हम मध्यमवर्गीय है जरुर पर हमे दिखावा, स्वागत, पद प्रतिष्ठा की जरुरत नही है ईन चीजों की....... वास्तविकता के इर्द गिर्द ही हमारी जीवनयात्रा है, दिखावे से हम कोसों दूर…
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राजस्थान की मायड़ बोली में: जांगिड ब्राह्मण समाज
जांगिड़ ब्राह्मण समाज
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मैं हूं बेटो जांगिड़ रो
ईण रो मने स्वभिमान है
मैं जांगिड़ घर जन्म लियो
विश्वकर्मा जी ने नमण करा
मैं जांगिड़ परिवार मा जन्म लियो
जेनाऊ जीवन भर धारण करा
मैं पुजा यज्ञ करीया बिगर
अन्न नाही पाणी नाही…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: प्रगति का मूल मंत्र
✍️ लेखक की कलम से.......
मुंबई/जीजेडी न्यूज: जन्म स्थान पर पढ़ाई पूरी कर लो, संस्कार अपने माता पिता व गुरुजनों से सिखो व आयु के 18 से 21 वर्ष तक की आयु सीमा तक जन्म स्थान छोड़कर आप, 400 कि.मी, 800 कि.मी., 1200 कि.मी.तक बाहर बड़े शहर में…
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राजस्थान की मायड़ बोली में: चलोजी चालो सत्संग में
चलोजी चालो सत्संग में
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सत्संग री आई शुभ बेला
आज भाग खुले है जांगिड समाज के
आज भाग जागे है गुलाल के
पधारो भक्तों पधारो सत्संग में
चालो जांगिड सुथार सत्संग मेला में
आज मेरे विश्वकर्मा भगवान पधारे हैं
सब…
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राजस्थान की मायड़ बोली में: परदेशी होईग्या पेट रे कारणीये
परदेशी होईग्या पेट रे कारणीये
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दिन रात दौडीयो
पर पेट कोनी भरीयो
इण पेट रे कारणीये
जाणे काई काई करीयो
छोटी उमर में मैं तो गांव छोड़ीयो
छोड़ीया दोस्त यार मारा सगळा
गयो दूर देश अणजाण…
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राजस्थान की मायड़ बोली में: फागण री मस्ती,गणी है सस्ती
फागण री मस्ती,गणी है सस्ती
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जीणी जीणी उड़े रे गुलाल
गौरी थारा गांव में.....
पेहलो फागण खेलण ने आयो
गौरी थारा गांव में.....
साथी ड़ा ने साथे लायो
चार दिन वास्ते उणने मनायो
पेहली होली मनावण आयो
गौरी थारा गांव…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: गीत हर रोज गाता हूँ
गीत हर रोज गाता हूँ
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गीत हर रोज नये नये गाता हूँ
मुझे रोको ना मुझे टोको ना....
ज्योति अन्दर जल रही
उसको बाहर आने दो
गीत सुरीले मुझे गाने दो
कविताएं अमर अमिट लिखने दो
कुछ लम्हे देकर जाना चाहता हूँ
सेतु मेरे आपके बिच…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कवि दिनकर जी राष्ट्र कवि थे
कवि दिनकर जी राष्ट्र कवि थे
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कवि होना खेल नहीं, वो सबसे अलग निराला था,
अद्भुत साहस वाला था, वो अद्भुत तेवर वाला था!!
एक मनुष्य का होना भाग्य है,
एक कवि होना सौभाग्य है!!
आठ बर्ष की अल्प आयु में पिता का छाया…
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