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काव्यलोक
कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: जीवन शैली बदल रही है
जीवन शैली बदल रही है
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वो एक जमाना था,
आज यह भी एक जमाना है
जब आमने-सामने मिलकर
आपकी शहद्द कैसी है
पुछा करते थे हम
अब दूर बैठे आकाश मार्ग से
रोज सुबह जय श्री विश्वकर्मा जी की
वाँटस अप के माध्यम से करते है
वो कैसा सुख…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: संत भक्त शोभाराम जी की जीवन लीला
द्वारकापुरी मे होवे आरती, झालर घंट बजावे!
जोती जगती बागो जलग्यो,शोभाराम बुझावे!!
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मेरी सोच
खास युवाओं के आत्मविश्वास को प्रोत्साहन देने वाला लेख.........
युवाओं की प्रगति के लिये भारत अभियान बने इस सद् भावना से यह लेख लिख रहा हूं..........
महाराष्ट्र/जीजेडी न्यूज: आयु के पन्द्रह व अठरा वर्ष की आयु सिमा मे समाज के हर…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं हिन्दू हूँ, धर्म मारो सनातन है
मैं हिन्दू हूँ, धर्म मारो सनातन है
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मैं हिन्दू हूँ ईण रो मने अभिमान है
मैं सनातनी हूं ईण रो मने स्वाभिमान है
पूजा पाठ हर रोज करु
आयो है मोठो त्यौहार पाच अगस्त रो
खुशीया झोळी भर लाई है
पाच अगस्त तो हर बर्ष…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं दुकानदार हूं…..
मैं दुकानदार हूं.....
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मैं दुकानदार हूं
ज्यादातर मैं दुकान मे पाया जाता हूं
मुख्य मार्केट में चलते नजर गुमाना
हर काँन्टर पर मैं ही मैं दिखाई दूंगा
सिर दर्द हो, या फिर हो बुखार
घर मे रुकने का नाम नही
जन सेवा मेरा धर्म है…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: अहंकार व संस्कार की परिभाषा
आज जानेंगे अहंकार व संस्कार के बारे सविस्तार, इन दोनो में क्या है अन्तर.......?
अहंकार का जन्म कैसे हो जाता है, कहा से पनपता है अहंकार वह समय पाकर बड़ा हो जाता है, व उद्रेक मचाता है अहंकार........?
इसके उलट दुसरा होता है…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: यज्ञ का मानव जीवन में महत्व
सतारा/मुंबई/जीजेडी न्यूज: प्रति दिन घर में करने वाला प्रातःकालीन यज्ञ। मनुष्य के पास अपनी दो चीजे है, वह है अपना शरीर व आत्मा! दैनिक जीवन को वेदों के अनुसार जीने से शरीर स्वस्थ और आत्मा पवित्र बन जाती है। जीवन को उत्तम बनाने के लिए हमें…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: प्रभात वंदना
प्रभात वंदना
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*अंधीयारी रात बित गई*
*प्रभात लालिमा निकल आई है*
*नया संदेश साथ लाई है*
*प्रथम प्रणाम परमपिता परमेश्वर को*
*दुसरा प्रणाम करु*
*जन्मदाता मात-पिता को*
*तिसरा प्रणाम पृथ्वी माँ को करु*
*चौथा करु…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: स्वागत नव वर्ष का करे
स्वागत नव वर्ष का करे
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गुड़ी पाड़वा यह मेरा नव वर्ष
बसंत बहार यह मेरा नव वर्ष
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा
पर्वत मलाईयों से बहार आई
नव चैतन्य महक सुगंध लाई
पेड़ो पर नव काँमल
पत्तियाँ जो निकल आई
बाग बगीचों मे…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: आशा और विश्वास
आशा और विश्वास
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भविष्य मेरा कैसा होगा ?
था मैं इससे अनजान.....
ये जमाना तो हालात पर
करता रहता है तोल मोल
आजीविका सुदृढ़ बनाना
था नही इतना आसान
अभागे पैर मेरे चल पड़े थे
ना जाने कौन डगर…
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