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काव्यलोक
कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कविता लिखने की कला
कविता लिखने की कला
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कविता लिखने की शक्ति
माँ शारदे का दिया हुआ
अमर अमिट प्रसाद होता है
जो माँ की उपासना
करने से मिलता है
कवि को वन उप वन मे
पेड़ो को देखकर
कल कल बहती सरिता को
देखकर अजब स्मर्ण से
खोदाई कर…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: सातारा मौन है
सातारा मौन है
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मैं सातारा शहर हूं
आज मैं स्तब्ध हूं, निशब्द हूं
सही सुना आपने
सही पहचाना आपने
हा सच है अब छुपछाप हूं मैं सातारा
सुनसान है सड़के मेरे शहर की
गल्ली मोहल्लें विरान है
सब्जी मंडी सुनसान है
बच्चें नही खेल रहे…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं खौड रो निवासी हूँ
मैं खौड रो निवासी हूँ
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वखाण ईण गांव रा
करु जितरा थोड़ा है
पाली जिला मे खौड
एक बिग बझार है
पक्का ऊंचा ऊंचा मकान अठै
खौड गाव री…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कवि मन भटकत भ्रान्ति का प्रतिक
✍️ एक लेखक लिख देता है कवि के मन बात.....
कवि मन भटकता रहता है
रात में तन सोता जरुर है
पर......?
कवि मन चलता रहता है
रात में आए विचारों से एक कविता बन जाती है
जो सुबह कागज के पन्नों पर उतर आती है
इसीलिए कहता रहता हूं
"कवि मन भटकत…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कुल्हाड़ी व पेड़ की कहानी है पुरानी
कुल्हाड़ी व पेड़ की कहानी है पुरानी
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एक दिन कुल्हाड़ी पेड़ से बोली
तेरा मेरा बैर तो है सदियों पुराना
आज फैसला हो जाए
तुम ताकतवर हो या मैं हूं
सभा बुलाई सारे गांव की
चौपाल पर सतरंजी बिछाई
सरपंच जी को अध्यक्ष…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: पंढरपुर धार्मिक यात्रा
महाराष्ट्र यह प्राचीन काल से संतो की भूमी रही है!! आषाढ़ी एकादशी के दिन पंढरपुर मे विठ्ठल मंदीर मे एक धार्मिक यात्रा का हर बर्ष आयोजन होता है जिसमें लाखो की संख्या मे भक्तगण दर्शन का लाभ लेते है!! इसी संदर्भ मे संतो की बहु मुल्य ज्ञान वाणी…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं जवाई बांध हूं
मैं जवाई बांध हूं
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मैं जवाई बांध हूं, मैं जवाई बांध हूं
मैं मारवाड़ का बड़ा तालाब हूं
मैं अनेकों की प्यास बुझाता हूं
मैंने अनेक अकाल देखे सहे है
मैं सेवाधारी बनकर सबकों
मैं पानी हरदम पिलाता रहा हूं
मानव पशुओं की…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: भाव विभोर हो जाता हूं
✍️ एक कवि की अलोकिक दुनिया का रहस्य कवि अपनी शब्दावली में अपने ही मुखार बिन्दू से सुनाते हुएं एक दृश्य (पिक्चर) खड़ा कर दिखाता है अपनी कलम से.......
नई नई कविताएं लिखने की कल्पनाओं में भाव विभोर हो जाता हूं , संसार को भूलकर शून्य प्रवाह…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: हम है आखिरी पिढ्ढी
हम है आखिरी पिढ्ढी
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हम है आखिरी पिढ्ढी
कोई हम से पुछे
पूर्वज कैसे थे❓
तो......... तो.........
यह बचा के रख लेना रे
घर मे पूर्वजो की
कमाई की निशानी रे
एक बसूला, कुल्हाड़ी, बिजना
तेल काजली से
उठने वाली…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: विश्वास,उम्मीदे जिन्दगी के पेहलू
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अनेक लोगों के समूह को समाज कहते है, एक विशेष जाती को नही, मनुष्य किसी पर विश्वास रखता है तो किसी से उम्मीदे भी रखता है, यही जीवन की रसमय (उपेक्षा, आपेक्षा) धारा है।
विश्वास, उम्मीदे, मित्र, समाज, रिश्तें,…
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