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काव्यलोक
दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: फिजूल शक मत करना
फिजूल शक मत करना
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दीये का काम है जलना
हवा ने बै वजह शंका पाल रखी है
दीये का काम है अंधेरे को हटाना
हवा ने बै वजह दीये से दुश्मनी पाल रखी है
दीये की लड़ाई अंधेरे के साथ है
हवा ने बै वजह उसे बुझाने की मन मे ठान…
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कवि प्रकाश चन्द जांगिड़ “पिड़वा” पाली की मारवाड़ी कविता: हाचि-हाचि केऊ
हाचि-हाचि केऊ
ने मौज में रेउ,
छापाक ऊना-ऊना देउ,
निंदा करे नाजोगा,
ने के करे गाँव रा बोगा,
ओपोरे तो मस्त रेणों
ने नी करणी फालतू री देणों,
करणीया करणी करे,
वे तो उँदा-उँदा इज मरे,
नेकी माते हालणियो,
एडा कोम ने रोम ऊ डरे,…
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ममता शर्मा की कलम से: पुश्तेनी काम पर दिखावे का कहर
पाली/राजस्थान: कोई भी काम (कार्य) हमारी मूल पहचान होती हैं ओर इसी कारण सदियों से अपने पूर्वज नाम से पहले अपने काम की कला से पहचाने जाते थे। और आज भी ऐसा ही हैं। बस कुछ परिस्तिथियां परिवर्तीत जरूर हुई हैं।
आधुनिकता की चकाचोंध में आज का…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: दो आंखो से मैंने देखा
दो आंखो से मैंने देखा
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दो आंखो से मैंने देखा
देश देखा, प्रदेश देखा
देखी रंग बिरंगी दुनिया
देखा हर जांगिड समाज गुरुप को
सब चेहरों पर नजर गुमाई
सब अपने अपने लगने लगे
ह्रदय से प्रेम उचल पड़ा
जय श्री विश्वकर्मा जी की कहना…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: व्हाट्स अप एक विश्वविधालय है
व्हाट्स अप एक विश्वविधालय है साथ ही फैश बुक उसी की बड़ी शाखा है सो इसमे डाले जाने वाले आपके मॅसेज हजारो हजारो लोग पढ़ते है इसीलिए हर मैसेज ज्ञान वर्धक हो या समाज हित का हो इसका विशेष ध्यान हर किसी को रखना चाहिए, राजनीतिक, अंध विश्वास फैलाने…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: जांगिड़ ब्राह्मण समाज का नारा
जांगिड़ ब्राह्मण समाज का नारा
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विकास , विकास , ओर सिर्फ विकास
अब करेंगे विकास की ओर प्रस्थान
अब हमे चाहिये सिर्फ विकास.........
वाद विवादो से हुऐ हम परेशान
वाद विवादो का युग अब बित चुका है
अब विकास का युग…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: काम अमर कर दीनो
काम अमर कर दीनो
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घर घर में गूंजे नाम
श्री विश्वकर्मा भगवान रो
पूजा पाठ हर रोज कर
करे शुरुआत आपणे काम धन्धा री
गौडवाड गांव 84 पट्टी रो
मंदिर जवाली मे है बड़ भारी
उठे भोजनशाला बड़ भारी बणाई…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: अदृश्य तकदीर है मेरी
➡ तकदीर से सवाल जबाव.......
ऐ तकदीर मेरी
तू कहा रहती है......❓
जरा पता तो बता तेरा
ललहाट मे रहती है
या फिर हाथ की लकीरो में
ईच्छा प्रबल है तुझे मिलने की
भाव सुचिया बहुत है मन में
तुझे सारी बतानी है
कही कर्ज चुकाना बाकी है
कही फर्ज…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: संगठन निर्माता बनना कितना मुश्किल काम है ?
स्वार्थ से परमार्थ की ओर.......................
स्वहित से हटकर परहित की भावना जब किसी के ह्रदय से उठकर जुबा पर आती है तब किसी ना किसी प्रकार के संगठन या फिर संस्था का जन्म होता है। वह व्यक्ति उसमे अपने को बहा ले जाता है।
हर पल संगठन को…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: गणेश चतुर्थी की यादें
गणेश चतुर्थी की यादें
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जो बीत गया जमाना
वो फिर लौटकर नही आता
जो हर बर्ष आते नये नये लोग
वो पुराने लोग नही आते
जो बीत गई गणेश चतुर्थी
वो फिर लौटकर नही आती
जो दो पहिया वाहन रैली का आंनद
वो फिर लौटकर नही आता…
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