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काव्यलोक
कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: मेरे पास कविता है…..
मेरे पास कविता है.....
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जब जब मुझे जीवन में दुख आया है,
मैंने अपने आप को कविता से जोड़ा है।
जब जब मुझे किसी ने तोड़ना चाहा है,
मैंने खुद को कविता की ममता से जोड़ा है।
जब जब मैं गिरा था,
कविताओं ने ही मुझे…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: आँखो से संसार निहारता हूँ….
आँखो से संसार निहारता हूँ....
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उगते-डूबते सुरज की लालिमा को निहारती है ये आँखे,
प्रात भ्रमण में बाग-बगीचों में फुलों को निहारती ये आँखे।
भ्रमण पथ पर मिले प्रेमियों से हाथ मिलाने पर हंसती है ये आँखे,
कभी प्रेम से…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: बुढापे में हुई पति-पत्नी में थोड़ी अनबन…..
बुढापे में हुई पति-पत्नी में थोड़ी अनबन.....
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मैं तुम्हारी आज्ञकारी धर्म पत्नी हूँ पिया
मुझे अब क्यूँ भूल गये हो बुढ़ापे में पिया
मैं पंचवीसी से छाठवी तक वादें निभाती आयी हूँ
यौवनकाल में कहते थे हम ना होंगे जूदा…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: जीवन राह नहीं थी इतनी आसान
जीवन राह नहीं थी इतनी आसान
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जीवन की राह नहीं थी इतनी आसान
जीतना मैंने समझा था इसको पहिचान
ऊंची चमक रही खनिजों से भरी पहाड़ी
मेरे लिए चढ़ना नहीं था इतना आसान
ढलान थी तीव्र फिसलन तेज कमाल
रुकना नहीं था सोचे…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: मन चाही मंझिल अब दूर नहीं…..
मन चाही मंझिल अब दूर नहीं.....
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वो झिलमिल दीपक दिख रहा दूर
वही तेरी मन चाही मंझिल है मेरे भाई
कर्म कर कष्ट दायी कठिन तू पंहुचा
अपनी मन चाही मंझिल के समीप
क्यू बैठा है थक कर मेरे…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं मरुधर रो रेवासी हूं……
मैं मरुधर रो रेवासी हूं......
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राजस्थान मरुधर देश मारो
मैं रेगिस्तान में रेवण वाळो
पाणी री कमी हर गरमीयों में
हम खास मैं देखण वाळो
करु मारा मरुधर देश री बातों
हियाळा में ठंड पड़े गणी जोरकी
सौमाशा में बरखा पड़े…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: जय श्री राम
🚩🕉 जय श्री राम 🕉🚩
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राम नाम के साबुन से,
जो मन का मैल छुड़ाएगा।
निर्मल मन के दर्पण में वह,
राम का दर्शन पाएगा।
नर शरीर अनमोल रे प्राणी,
प्रभु कृपा से पाया है।
झूठे जग प्रपंच…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: युग परिवर्तन
✍ लेखक की कलम से......
हरेक सौ बर्ष के बाद एक वैष्विक महा मारी पीछले सात सौ बर्षों से आती रही है सिर्फ इसकी पहिचान के लिए समय समय पर अलग अलग नाम दिये गये है यह वाक्या देखने सुनने में आता रहा है व पिछला इतिहास की पुस्तकें पढने मात्र से…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं हूँ जांगिड ब्राह्मण
मैं हूँ जांगिड ब्राह्मण
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मैं उस समाज का नागरिक हूं
जहा हर घर, दुकान में,
ब्रह्म ऋषि अंगिरा जी की आरती गाई जाती है!!
मैं उस समाज का नागरिक हूं
जहा हर घर मे पूजा आरती करने तक,
कोई बंधू अन्न पाणी ग्रहण नही करता!!…
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दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मिली ही नही सुख धारा जीवन में..
मिली ही नही सुख धारा जीवन में..
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गरीबी मिली जन्मते ही घर के द्वार,
अपयश मिला उच्च शिक्षा केन्द्र के द्वार,
सब कुछ मिला जीवन में,
पर शिक्षा का रहा अभाव जीवन में!
ज्यू ज्यू जीवन आगे बढा,
हुई दोस्ती ऐसी दु:ख से,…
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