Browsing Category
हमारे लेखक
दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: चारों वेद प्रथम दर्शनी प्रस्तावना…….
वेद सृष्टि के आदि में परमात्मा द्वारा दिया गया दिव्य अनुपम ज्ञान हैं। वेद सार्वभौमिक और सार्वकालीन है।
सृष्टी बन गई तो इसमें रहने का कुछ विधान भी होगा उसी विधान का नाम है वेद।
वेद चार हैं - ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद और अथर्ववेद। चारों…
Read More...
Read More...
दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: सच्चा समाज सेवक
सच्चा समाज सेवक
🌹🕉🌹🕉🌹🕉🌹🕉🌹
🏃🏾♂....लाडपुरा का लाल....
लाडपुरा से निकला सुकून लेकर
एक शकून की तलाश में
गांव गलियारे से निकला
🏃🏾♂.... एक शहर की ओर
गांधीधाम में विस्तार पाया
अनंत लोगों से सम्पर्क जमाया
कर परिश्रम अति कठोर
माँ…
Read More...
Read More...
दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: जांगिड सुथार समाज का “विश्वकर्मा महाकुंभ”
जांगिड सुथार समाज का
"विश्वकर्मा महाकुंभ"
"विश्वकर्मा महाकुंभ" की तैयारियां,
हो रही है जयपुर में जोर तौर से.....
कविता व लेख लिखना ये हंगामा खड़ा करना मकसद नही है मेरा,
समाज में प्रगति की लहर दोड़ी चली आएं !!
जांगिड सुथार समाज…
Read More...
Read More...
दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: पढंरपुर वारी
पढंरपुर वारी
............................
पढंरी ची वारी ला नाचत नाचत
मी चाललो विठ्ठला चा द्वारी
संसारी आठवणी विसरुन सारी
अंग माझे जागृत होते
मन माझे सून झाले
भक्ति रसात मी बुड़ालो
हरि किर्तन करित करित
अन्तर ध्यानात् मी बुड़ालो
…
Read More...
Read More...
दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कवि की धनसंपदा
कवि शब्दों की दुनिया में उपासक स्वरुप होता है, करुणा, दया, क्षमा, याचना, प्रार्थना,उपासना, प्रेम ये सब बालक कवि के प्रेमी मित्र होते है वह कवि इन छोटे शिशु सखाओं के साथ अठखेलियाँ करता रहता है,बाल लिलाएं करता रहता है, इसीलिए कवि रमता योगी…
Read More...
Read More...
दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कविता अमर रहती है (सिरियल न. 3)
कविता अमर रहती है(सिरियल न. 3)
=======================
लोग कहते है कविता समय बर्बाद करती है,
ये क्या कम है कि कवि जाने के बाद दुनिया याद करती है !!
कविता व लेख लिखना ये हंगामा खड़ा करना मकसद नही है मेरा,
समाज में प्रगति की लहर…
Read More...
Read More...
दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: चिन्ता करता हूं भावी पिडीयों की
चिन्ता करता हूं भावी पिडीयों की
.............................................
पीड़ाएं मेरी पर्वत सी हो गई
अब ये पिगलनी चाहिए
एक नदी हिमालय से
सुखे प्यासे राजस्थान के लिए
अब अवश्य निकलनी चाहिए
खेत जमीन बहुत है मेरे पास
पानी बिन ऊगा…
Read More...
Read More...
घेवरचन्द आर्य पाली की कलम से: मातृ सेवा का आत्मिय आनन्द
लेखक: घेवरचन्द आर्य पाली
दिनांक 21 जून अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस सुबह नौ बजे मैने प्रेक्षा को आवाज दी प्रेक्षा......वह दोडी हुई आई।
तेरी दादी ने अन्दर पेशाब कर दिया, कपडे परिवर्तन करने है, मैने कहा।
प्रेक्षा आज्ञा का पालन करते हुए धुले…
Read More...
Read More...
दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं हूँ एक मारवाड़ी
मैं हू एक मारवाड़ी
....................................
आप हमे मारवाड़ी कहते हो
मन को अच्छा लगता है जरुर
यह हमारे क्षैत्रीय भाषा से नामकरण है
जो हमारा जन्म भूमि से नाता जोड़ता है
आप तो याद रखकर यह भी कह देते
जहां नही जाएं रेलगाड़ी…
Read More...
Read More...
दीपक आहूजा वालों की कलम से: पथिक
पथिक
पथिक एक है, और पथ हज़ार,
दुविधाग्रस्त है, मन का संसार।
अमर शाश्वत, क्या इस जग में,
विषय विकार पड़े, हर पग पे।
कठिन हो गई, जग की हर रीत,
कैसा आलिंगन, कैसी ये प्रीत।
अंतर्मन में उठता, गहन सवाल,
छोटी सी देह में, हृदय विशाल।
अपार…
Read More...
Read More...