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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: प्रगती की परिभाषा ही श्रम है

✍️ लेखक की कलम से...... प्रगती क्या है, प्रगती (विकास) किसे कहते है, प्रगती की व्याख्या क्या हो सकती है, यह बहुत सारे प्रश्न युवाओं के मन में आयु के 18 से लेकर 28 बर्ष की अवस्था में आते है वह आना भी चाहिए, यही प्रगती करने के शुभ संकेत है,…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: पिता आधार है घर परिवार का

पिता आधार है घर परिवार का @@@@@@@@@@@@@@ माँ की ममता सब ही सुनावे मैं बतलाऊ क्या है पिता ? माँ जन्म दायत्री है तो पिता घर का मालक है माँ ममता लुटाएं बच्चों पर पिता खोज की खाण है माँ परिवार की चिन्ता करे तो पिता करे नियोजन रोटी…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: जायका मेरा, पसंद आपकी

जायका मेरा, पसंद आपकी ****************************** गरीबी से गुजरा हूँ साहब गरीबी का दर्द जानता हूँ! आसमां से ज्यादा, जमीं की कद्र जानता हूँ! देखा हूं प्राचीन रितीरिवाजों को देखी है शहरों की चकासोंद दुनिया को! अनुभव समाज कार्य का…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: माँ की ममता

माँ की ममता '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' माँ दुनिया की वो महान् दाता है जो सब कुछ अपने प्यारे बच्चों पर सहज लूटा देती है जब मैं छोटा था एक रात माँ से बोला था माँ मुझे डर लग रहा है…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: निरोगी काया

निरोगी काया का राज क्या है, आज इस विषय पर चर्चा करने की जरूरत है आन पड़ी है। इसका कारण यह है कि लॉकडाउन के चलते हर इंसान अपने अपने घरो मे बिना काम धन्धे के खाली बैठा है, नियमित चलने वाली दिनचर्या रुक गई है या फिर बहुत सारा बदलाव उसमें जरुर…
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कवि प्रकाश चन्द जांगिड़ “पिड़वा” पाली की कलम से: अक्षय तृतीया के अवसर पर विशेष

अक्षय तृतीया के अवसर पर विशेष आज कोई करणों खूब दान पुण्य करणों, पुण्य रो मटकों भरणो। मानव हित रो कोम करणों, की नी वे तो मोन धरणो। आज रा अबूझ मोरत वे, उजाळा चारों खुट वे। खरीदना गाबा ने गेणा, परा उतरे मत ला लेणा। वडेरो री सेवा…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: सुसंस्कृत “सेवाधारी” बहु

लेखक की कलम से..... परिवार का पिडीजात वंश चलाने के लिए एक "आज्ञाकारी पुत्र" की जरूरत होती है ठीक वैसे ही घर परिवार को चलाने के लिए एक "सुसंस्कृत सेवाधारी बहू" चाहिए होती है, ऐसा कहते हुए समाज में अनेक बूजुर्गों के मुह से हमने आपने सुना…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: जमीन से मंहगी दवा हो गई

जमीन से मंहगी दवा हो गई                   ................................................................................................... हाथ में लिये कुल्हाड़ी   धना धन पेड़ असंख्य  काट रही है दुनिया सारी          हाईवे…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: गुरु वट वृक्ष है समाज का

गुरु ब्रह्मा , गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात ब्रह्म , तस्मै श्री गुरुवे नम: अत: गुरु का स्थान सर्वोपरि है समाज में......... गुरुकुल यह प्राचीन काल से चली आ रही विद्या हासिल करने का केन्द्र रहा है, जहा राजकुमार के रुप मे…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: रुपयों की खोज…?

ये कैसा जमाना आया ---------------------- वो भी एक जमाना था जब पूर्वजों को काम के बदले में अनाज लेते देखा था हमने हाथ, वेथ, चपटी चार अंगुली यही नाप का पेमाना था उनका सुख चैन के साथ पुरा परिवार था रुपया पैसा कम था पर सुख से वे सब…
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