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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: गतिमान युग का पदार्पण
गतिमान युग का पदार्पण
मैं निकला सुकुन लेकर
एक शकून की तलाश में
गांव गलियारे से निकला
एक शहर की ओर....
काम धन्धे की भरमार हो
कुछ लोग मेरे साथ हो
रुपयों की तलाश में
रिश्तें नाते पीछे छूट गएं
जीवन…
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मुल्क राज आकाश की कलम से गीत: साथ तो हर पल है
गीत : साथ तो हर पल है
मेरी हर मुश्किल का तू ही हल है।
है भरोसा पूरा साथ तू हर पल है।।
मेरा कोई काम कभी रुक ना पाता।
रखवाला बनकर हमेशा तू आता।
तभी तो जिंदगी का हर क्षण सफल है।
है भरोसा पूरा साथ तू हर पल है......
थक जाता जब मैं तू…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: शहरों के विकास में जांगिडों का सहयोग
जीजेडी न्यूज ब्यूरो: कोरोना काल के पहले गांवो से आए हुए यह लोग शहर से अब कोरोना डर के कारण ही चले गांवों की ओर......
वास्तविकताओं को नकारा नही जा सकता है। शहर का विकास इन्हीं गांव के लोगों ने किया है। शहर के लोग तो मजदूरी देने में सबल है,…
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मुल्क राज आकाश की कलम से: सौगात
मुल्क राज आकाश की कलम से
सौगात
जिसके सिर पर तेरा ही हाथ है
यह तेरी मेहर की ही तो बात है
1... जिसे ना पूछता कोई भी जमाने में
नाम शोहरत है अब जमाने में
अपना कुछ नहीं यह तेरी ही सौगात है
2... गरीब नवाज हे तु हमदर्द गम खार हे तु…
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मारवाड़ी कवि प्रकाश चन्द जांगीड़ की कलम से गद्य,पद्य मिश्रण भाषा-मारवाड़ी: ओपी सुदार-सुदार करता-करता…
गद्य,पद्य मिश्रण
भाषा-मारवाड़ी
ओपी सुदार-सुदार करता-करता खुद विगड़ रिया हो।
कीकर तो इउ!
एक दूजा ने देखी-देखी ने बळो,
बोलवाराफोडा पड़े, आवे जिउ ई अडिगा ठोक दो।
कोई की केवा री कोशस करें, उण उ पेला उण री वात काट दो।
विना समजिया…
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कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: चारों वेद प्रथम दर्शनी प्रस्तावना
चारों वेद प्रथम दर्शनी प्रस्तावना
वेद सृष्टि के आदि में परमात्मा द्वारा दिया गया दिव्य अनुपम ज्ञान हैं। वेद सार्वभौमिक और सार्वकालीन है। सृष्टी बन गई तो इसमें रहने का कुछ विधान भी होगा उसी विधान का नाम है वेद।
वेद चार हैं -…
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राजन छिब्बर की कलम से: “ आज मेरे देश को सुभाष चाहिए “
राजन छिब्बर द्वारा प्रेषित
“आज मेरे देश को सुभाष चाहिए “
नई दिल्ली: प्रिय मित्रो , जय हिन्द
आज से करीब 17 वर्ष पहले राष्ट्रीय सैनिक संस्था के संरक्षक पंजाब के पूर्व राज्यपाल और चंडीगढ़ के मुख्य प्रशासक लेफ्टिनेंट जनरल बी के ऍन…
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मारवाड़ी कवि प्रकाश चन्द जांगीड़ की कलम से: चाहे कहि भी जाना
कविता
कवि : प्रकाश चन्द जांगीड़ "पिड़वा"
चाहे कहि भी जाना,
पर किसी की मौत का मजाक बनाने मत जाना।
जाओ तो फिर बनावटी नैतिकता का पाठ न पढ़ाना।
समय चला जायेगा लेकिन भूलेगा नही तुम्हे जमाना।
भूल जो हुई इक बार तो चलेगा न फिर कोई बहाना।…
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