इसरो के वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर ओमप्रकाश पांडे: विश्व गुरु भारत विज्ञान के सामने मार्गदर्शक है वेदों का ज्ञान
आज हम बात करेंगे विश्वविख्यात हस्ती ओमप्रकाश पांडेय के साथ यह विद्वान हैं, अंतरिक्ष विज्ञान के वैज्ञानिक विषय के विशेषज्ञ हैं। 70 साल के अंदर इन्होंने जो अलग-अलग पढ़ाव देखे और किस प्रकार से भारत के अलावा विभिन्न राष्ट्रों के अंदर अपने जीवन का विचरण किया। ज्ञान योग, ध्यान योग और कर्म योग के माध्यम से इस सृष्टि के अंदर भारतीयता को जन जन तक पहुंचाया, भारतीयता भाव भूमि अद्वितीय है। यह बचपन से लेकर आज तक जो भी पढ़ते आए, लिखते आए, और समझते आए हैं। पूरे विश्व के अंदर घूमने के पश्चात भारतीयता को महत्वता दी। इनका एहसास करके विश्व के तमाम मानव प्राणियों तक अपना एक संदेश पहुंचाने का एक प्रयास कर रहे हैं।
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ओ३म् (ॐ) का मतलब ईश्वर ही क्यों है
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ब्रह्मांड में प्राकृतिक ध्वनि निरंतर कौन सी चलती है
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शब्द कभी मरते नहीं इसका वैज्ञानिक आधार क्या है
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वेद का विज्ञान पश्चिम देशों ने क्यों स्वीकार किया
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पढ़ाई करने के बाद भी आपको कोई ज्ञान क्यों नहीं मिलता
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ब्रह्मांड के अंदर मैं मानव जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई
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विज्ञान में और ब्रह्मज्ञान में क्या अंतर है
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शिक्षा और विद्या में क्या फर्क है समझिये
आज हम बात करेंगे विश्वविख्यात हस्ती ओमप्रकाश पांडेय जी के साथ…
यह विद्वान हैं, अंतरिक्ष विज्ञान के वैज्ञानिक विषय के विशेषज्ञ हैं। 70 साल के अंदर इन्होंने जो अलग-अलग पढ़ाव देखे और किस प्रकार से भारत के अलावा विभिन्न राष्ट्रों के अंदर अपने जीवन का विचरण किया। ज्ञान योग, ध्यान योग और कर्म योग के माध्यम से इस सृष्टि के अंदर भारतीयता को जन जन तक पहुंचाया, भारतीयता भाव भूमि अद्वितीय है। यह बचपन से लेकर आज तक जो भी पढ़ते आए, लिखते आए, और समझते आए हैं। पूरे विश्व के अंदर घूमने के पश्चात भारतीयता को महत्वता दी। इनका एहसास करके विश्व के तमाम मानव प्राणियों तक अपना एक संदेश पहुंचाने का एक प्रयास कर रहे हैं। यह एक साधारण से दिखने वाले व्यक्ति एक अद्वितीय व्यक्तित्व हैं। मैं नरेंद्र शर्मा परवाना इस महानुभाव को नमन करता हूं इनका अभिनंदन करता हूं और विश्व के तमाम अपने पाठकों को कहना चाहूंगा कि वह भी इस महानुभाव को अपने दिल से सुनें इससे आपके जीवन में एक नई ऊर्जा देते हुए आपके जीवन बेहतर परिणाम आपको प्राप्त होगा। एक नया आयाम आपको प्राप्त होगा। एक सज्जनता, एक शालीनता का सुंदर सा स्वरूप प्रकट होगा। तो ओम प्रकाश पांडे जी आप उम्र दराज हैं, हम आपके जीवन के सफर को जानना चाहेंगे एक एक पड़ाव को हम समझना चाहेंगे। आइऐ सीधे सवाल करते हैं। भारत को विश्व गुरु किसलिये कहा गया और विज्ञान के सामने मार्गदर्शक की भूमिका वेदों का ज्ञान कैसे निभाता है।
इसरो वैज्ञानिक ओम प्रकाश पांडे जी के साथ सवाल जवाबों का सिलसिला शुरू करते हैं…
सवाल:- सबसे पहला सवाल यही है कि आप अपना परिचय अपने ही मुखारविंद से हमारे पाठकों तक पहुंचाएं?
जवाब:– आपके माध्यम से आपके पाठकों को मैं प्रणाम करता हूं। ओम प्रकाश पांडेय मेरा पूरा नाम है और मैं अंतरिक्ष विज्ञान पर विशेष तौर से काम किया हूं। लेकिन केवल अंतरिक्ष विज्ञान पर ही नहीं रहा, बल्कि और सारे विज्ञान के और सारे आयामों पर भी मैंने काम किया और विशेषकर मेरी रुचि बाद में जाकर डिवेलप किया। अब कोई और यह है कि शिक्षा कैसी होनी चाहिए, क्या शिक्षा है और भारतीय ज्ञान परंपरा में हमें क्या मिलता है।
सवाल:- शिक्षा और विद्या में क्या फर्क महसूस करते हैं?
जवाब:- बहुत अलग-अलग चीज है शिक्षा जो है शिक्षा का मूल उद्देश्य जो है व्यक्तित्व का विकास करना होगा। व्यक्ति का विकास करना होता है। दुर्भाग्य से आज शिक्षा जो है केवल नौकरी पाने का एक साधन बनकर रह गई है। व्यक्तित्व विकास की बातें भूल गए। शिक्षा से एक व्यक्ति का व्यक्तित्व को बढ़ता है और विद्या जो है वह आपको आध्यात्मिकता की तरफ ले जाती है। विद्या तो सभी को कुछ करना सिखाती है। शिक्षा आदमी के व्यक्तित्व का विकास करते हैं तो जब आपके मेधा प्रबलित होगी मेघा से आपका ज्ञान और आपका विवेक होगा। मगर विवेक से कोई भी ज्ञान का कोई मतलब नहीं रहता है। क्योंकि उसमें आदमी सिर्फ तोता बन जाता है और दूसरी बात है कि हमारे यहां तो यह महत्व दिया गया है कि भारत में किसी डिग्री को कभी महत्त्व नहीं दिया गया है। कहने का तात्पर्य यह है दूसरे की स्त्री को माता के समान देखो, दूसरे के धन को मिट्टी के टुकड़े के समान समझो और सब में अपनी आत्मा का दर्शन करो। अगर यह तीन चीज हो जाती है तो वही आदमी जिसके अंदर यह तीनों गुण हैं वही आदमी विद्वान कहलाता है। यही भारत की परंपरा थी। लेकिन अब जो परंपरा यह हो गई कि किसको कितनी डिग्री मिली, किसको कितना ओहदा मिला, कौन किस पोजीशन में है, इसका इसका ज्यादा महत्व हो गया है। मानवता पीछे हट गई, जबकि हमारे यहां मानवता की बातें हमेशा होती रही हैं। हमारे यहां मनुष्य बनाने की प्रक्रिया होती थी। मनुष्य नहीं बनते आपको साइंटिस्ट मिल जाएंगे, आपको डॉक्टर मिल जाएंगे, आपको इंजीनियर मिल जाएंगे। लेकिन आपको मानव मिलना मुश्किल है और समाज में कंपटीशन है। वास्तव में शिक्षा का उद्देश्य केवल यह होना चाहिए कि हमें मानव बनाना है।
सवाल:- क्योंकि आप वैज्ञानिक हैं, वेदों के ज्ञाता हैं तो विज्ञान में और ब्रह्मज्ञान में हम क्या अंतर महसूस करते है?
जवाब:- जब हमने इस पृथ्वी पर हमने जन्म लिया है इस भौतिक संसार में हमने जन्म लिया है तो भौतिक संस्कार संसार के मिले। कार्यविधि को ठीक ढंग से समझना है, हम लोग इसका पालन कर सकते हैं। ठीक ढंग से अपने जीवन यापन कर सकते हैं इसके लिए विज्ञान की आवश्यकता होती है। लेकिन हमें अपनी आत्मा का विकास करना है, अपने व्यक्तित्व का विकास करना है, तो हमें ब्रह्मज्ञान भी जानना चाहिए। वह ज्ञान है, वह ब्रह्मज्ञान और विज्ञान है जो आपको कुछ भी सिखाता है। इस भौतिक जगत में आपको कौन-कौन सी चीजें खानी हैं, कैसे रहना है, कैसे अपने स्वास्थ्य को ठीक करके रखना है, यह सारी चीजें विज्ञान और ब्रह्मज्ञान में अंतर समझााती हैं।
सवाल:- जो हम देखते हैं इस ब्रह्मांड के अंदर मैं मानव जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई है?
जवाब:- यह मानव जीवन की उत्पत्ति जब हमारा यह एटमॉस्फेयर है जिससे पर्यावरण आप कहते हैं जो पृथ्वी से 485 किलोमीटर की एल्टीट्यूड जिसे ऊंचाई कहते हैं उस ऊंचाई तक हमारा पर्यावरण है और यह पर्यावरण के सात परत हैं और उसके बाद में पूरा अंतरिक्ष है। इसमें जो लिविंग एलिमेंट्स हैं, जो जीवधारी हैं, वह इसी पर्यावरण के अंदर में रहते हैं। एक पॉलीमर पैदा हुआ। जिसे हम ऑर्गेनिक मलीकुल से कहते हैं। वह मॉलिक्यूल आकाश पर आया इसकी साइंस में पेनिसपैरमिया की थ्योरी है। पेनिसपैरमिया की थ्योरी हमें यह बताती है कि जो जीव है वह अंतरिक्ष से धरती पर आया है।
यही बात को हमारे मैत्रीय ब्राह्मण में कहा गया है। रोहिणी ने इस धरती पर जीव को उत्पन्न किया रोहिणी मतलब अंतरिक्ष में रोहिणी है, धीरे-धीरे वह जीव पर्यावरण में प्रवेश करके धरती की परतों में सात परतों को छेद कर नीचे आया है। जब नीचे आया तो वह सूर्य की किरणों के माध्यम से आया तो हाइड्रोजन से नाइट्रोजन बना n14 बना फिर c14 बना जिसे कार्बन कहते हैं जब c14 से c12 बन गया तो उसके साथ जल मिट्टी और वायु का जब संसर्ग पाया तो देह बनना शुरू हुआ और देह बनने के बाद में हमारा डीएनए बना। डीएनए बनने के बाद में जिसके अंदर जितनी पोटेंसी थी उसके हिसाब से उसके आकार बनते गए और नाना प्रकार के जीव बनते गए और इस तरीके से जीव बने।
सवाल:- आपने कितनी पढ़ाई करी आपने इतने सालों के कौन-कौन सी डिग्री ली?
जवाब:- देखिए जब डिग्रियां हमने ली तब कोई अनुभव नहीं था , तब तो हमने किताब पढ़ी, किताब तो पढ़ा कर समझा देती हैं। महत्व डिग्री का नहीं है। महत्व तो आपके अनुभव का है, कि आपने कितना एक्सपीरियंस किया और उस एक्सपेरिमेंट में आपने क्या पाया और उससे आपने कितना ज्ञान अर्जित किया। डिग्री तो ठीक है उसमें एमएससी की है, पीएचडी है, डीएससी की है, डीलीट की है कई सारी डिग्री हैं।
यह तो एक तरह से पढ़ाई हो गई लेकिन आप यह समझ लीजिए की पढ़ाई करना व पढ़ाई करने से आपको कोई ज्ञान नहीं मिलता, ज्ञान तो तब मिलता है जब उसका आप प्रैक्टिकल एप्लीकेशन करके अनुभव के माध्यम से आप उसको खुद कुछ अर्जित करते हैं ।
सवाल:- हमारे ऋषि मुनियों तपस्वियों ने जो बातें लिखकर हमारे सामने दी लेकिन आज विज्ञान उसके ऊपर रिसर्च कर रहा है या सर्च कर रहा है। वेद और विज्ञान का संक्षिप्त में बताएं क्योंकि वेदों को पढ़ पश्चिम देश के इसे कहां तक स्वीकारते हैं सरल भाषा में बतायें जो सबको समझ में आ जाए?
जवाब:- मैं आपको एक छोटी सी बात बता देता हूं जहां आप समझ लेंगे। अभी बहुत सारे लोग इसका मजाक भी उड़ाते हैं, क्योंकि उनको इसका ज्ञान नहीं है। महाभारत में जैसे तीर चला देते थे। महाभारत की बात कर रहे हैं वर्तमान में जो हरियाणा प्रदेश की धरती है कुरूक्षेत्र यहां पर पूरा महाभारत हुआ तो उसमें वो तीरकैसे चला देते थे अग्नि निकल जाता थी, पानी निकल जाता था।
यह महत्वपूर्ण सवाल है। बात यह है कि विज्ञान की गहराई में जब आप जाएंगे तो आप पाएंगे यह कि सबअटॉमिक पार्टिकल जिसे कहते हैं इतने छोटे होते हैं जो आपको दिखाई नहीं पड़ते हैं। यह कोई भी आकाश की कोई भी जगह या आपके सामने की कोई जगह खाली नहीं है वाइल्ड कुछ नहीं है, सब उस से भरे हुए और उसमें सारे तरह के सबअटॉमिक पार्टिकल हैं। जब वह सब पार्टिकल आपस में जुड़तें हैं तो एक आकार लेते हैं। अब सबअटॉमिक पार्टिकल में कुछ अग्नि के पार्टिकल भी होते हैं। कुछ जल के पार्टिकल होते हैं, कुछ वायु के पॉलिटिकल होते हैं। वायु के पार्टिकल्स जोड़कर मॉलिक्यूल बनता है, वह वायु बन जाता है।
उसी तरह से जल की एक बूंद में लीजिए उसमें 42 मॉलिक्यूल होते हैं, 11 मॉलिक्यूल में अणु जो हैं कम से कम लाखों अणु होते हैं। इसको जुड़ने के बाद में ही कोई चीज आकार में आती है। आकार में आने के लिए यह सब चीजें जुड़ती रहती हैं जैसे हम आप बात कर रहे हैं। हम मानव हैं, भारत के रहने वाले हैं। इसलिए मैं आपसे हिंदी में बात कर रहा हूं, आप समझ रहे हैं। यही आप फ्रांस में चले जाइए वहां फ्रेंच बोलेंगे तो समझेंगे, इंग्लैंड जाएंगे तो आप इंग्लिश में बोलेंगे तभी समझेंगे तो वह पार्टिकल अपनी-अपनी भाषा में बात करते रहते हैं।
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Every particles of the nature as their own mouth and their on language.
लेकिन उनकी ध्वनि आप सुन नहीं पाते व्हिच डिसमिल से कम है , पर वह आपस में बात करते रहते हैं, वह 67 ऑक्टविब्स से नीचे की ध्वनि है, आपके कान के पास में जाकर मैं तेज से बोलूं तो आपके कान को तकलीफ हो सकती है। ठीक उसी तरीके से अपने सामान्य भाषा में उनसे बात करेंगे वह पार्टिकल स्केटर्डस हो जाते हैं फैल जाते हैं तो उन सबअटॉमिक पार्टिकल के मंत्र हैं। क्योंकि सभी शब्द से बने हैं तो शब्द ही महत्वपूर्ण है। जैसे सर्दी का मौसम है और आपके पास रजाई नहीं है, सर्दी बहुत लग रहे हैं तो जो री शब्द है जो री है वो ऋग्वेद कब पहला मंत्र ही
अग्नि मिले पुरोहितम
री अग्नि का शब्द है तो आप री री री का उच्चारण करना शुरू कर दें तो आप महसूस करेंगे कि आपके शरीर में सर्दी कम लगने शुरू हो जाएगी, गर्मी बढ़ जाएगी। क्योंकि री अग्नि का शब्द है। कुछ शब्द ऐसे है जैसे जल के लिए क शब्द है जो कबूतर होता है क का मतलब जल। जब आपका क का उच्चारण करेंगे तो आपके अंदर जल की एक भावना महसूस होने लग जाएगी। आपने टीवी में देखा होगा जो अर्जुन धनुष को उठा कर के तार को खींच करके आंखें बंद करके कुछ बोलता है तो तुरंत एक बाण उसके धनुष पर आ जाता है तो कहने का तात्पर्य है वह मानसिक रूप से जाप करता है, इतनी मध्यम आवाज में बोलता है, जो वह सबअटॉमिक पार्टिकल सुन सकते हैं तो वो उनका आह्वान करता है कि आप लोग सब इकट्ठा होकर आइए सभी मॉलिक्यूल जोड़ करके वह उस बाण में सामने आ जाते हैं और जिस अग्नि का उसने मंत्र पढ़ा अग्नि कहीं मॉलिक्यूल रहेंगे और अग्नि का ही बाण बन जाएगा। यह विधा हमारे ऋषियों ने, हमारे गुरुओं ने, अपने शिष्यों को सिखाई थी। अब ना उस तरह के गुरु रह गए और अब ना उस तरह के शिष्य रह गए तो अब हमें लगता है कि जादू है। यह क्या है यह तंत्र है, या मंत्र है, यह कोई जादू नहीं है यह भी एक तकनीकी है यह भारतीय तकनीकी थी।
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सवाल:- शब्द कभी मरते नहीं कर्म कभी मिटते नहीं मैं चाहूंगा कि आप इसको पर थोड़ा सा विस्तार से बताएं?
जवाब:- आपने बहुत गंभीर प्रश्न पूछ लिया और पता नही लोग समझ पाएंगे की नहीं लेकिन मैं आपसे कहना चाहूंगा जैसा कि जब भी कोई गति होगी तो उसमें से ध्वनि निकलेगी जब हवा चलेगी उसमें तो ध्वनि है, हम पंच भूतों से बने हैं। पृथ्वी अग्नि, जल, वायु और आकाश।
पृथ्वी मतलब है सॉलिड जैसे आपके दोनों हाथ की हथेलियों को आपस में बजाएंगे तो थप-थप की आवाज आएगी हवा चलेगी तो सन-सन की आवाज निकलेगी, पानी बहेगा तो कल-कल की ध्वनि निकलेगी। अभी सर्दी का मौसम है हम आग जलाते हैं तो उसमें से दूदू की आवाज आती है। तो ध्वनि तो सब जगह है, इसमें कोई दो राय नहीं है।
अब सवाल यह है कि सूर्य की रोशनी आ रही है तो उसकी भी ध्वनि है। वह सब जो ध्वनि है मिलियन बिलियन टाइम बिलो एंड ऑर्डिनल कैपेसिटी है बहुत मध्यम ध्वनि है, वैसे तो नहीं आ रही है, वह ध्वनि क्या निकाल रही है रिंग आंग इंग उँग लिम यह स्वर निकाल रही है व्यंजन और स्वर दोनों अलग होते हैं। एक तारा है साइंस में हम इसे स्टार कहते हैं। क्योंकि यह स्वर निकलता है इसलिए शतपथ ब्राह्मण में यह कहा गया है
स्वारर देवा सूर्या
स्वर को देने वाला है इसलिए हम इसे सूर्य कहते हैं, स्वर निकाल रहा है, पृथ्वी से बंद निकल रहा है। इसलिए कहा जाता है कि जब संस्कृत में हम बात कर रहे हैं तो वह स्वर सूर्य से निकल कर आया है तो सूर्य मंडल तक वह जा सकता है। ध्वनि खराब नहीं होगी, वह नष्ट नहीं होगी। लेकिन हम और साइबेटिक लैंग्वेज में हम बात करें और फोनेटिक में हम बात करते हैं तो क्योंकि वह मेन मेड है। मैन मेड होने की वजह से वह पृथ्वी के एटमॉस्फेयर में तो रहेगी यहां तक कि 485 किलोमीटर तक लेकिन 485 किलोमीटर के बाहर आपको संदेश भेजना है तो वह वहां काम नहीं करता। यह नहीं किया पूरे आकाश में घूमेगा केवल एटमॉस्फेयर में ही रहेगा जो 485 किलोमीटर का जो अंतरिक्ष है उसमें ही रहेगा ।
इसके लिए चाहे आप जर्मन बोले फ्रांस में बोले आप इंग्लिश में बोलना चाहे आप हिंदी में बोलें लेकिन जब आप संस्कृत में बोलेंगे सूर्य यहां से 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है और जो सूर्य का सूर्य मंडल है वह जो है लगभग लगभग 1000 एस्टॉनोमिकल यूनिट के बराबर है एक एस्टॉनोमिकल यूनिट जिसे AU कहा जाता है। दुनिया में 15 करोड़ किलोमीटर का होता है 1000 एस्टॉनोमिकल यूनिट x 15 करोड़ इसको जोड़ दीजिए, उतना बड़ा क्षेत्र है तो संस्कृत में बात करेंगे या फिर किसी भी भारतीय भाषा में आप बात करें क्योंकि सभी संस्कृत से जुड़ी हुई है क्योंकि इसमें कोई और भाषा नहीं मिली हुई है यह विशुद्ध रूप से जिसे बोलते हैं हम क्लिष्ट हिंदी शुद्ध हिंदी उसमें आप बात करेंगे तो यह आगे घूमती रहेगी।
इसी कारण नासा ने भी संस्कृत भाषा को महत्व दिया है जब वह दूसरे ग्रहों में आदमियों को भेजते हैं तो वहां इस लैंग्वेज में बात नहीं हो पाती है इसलिए वहां से हम रेडियो सिग्नल पर बात करते हैं तो भाषा में कैसे बात करें तो वह 30 साल से इसके ऊपर रिसर्च कर रहे थे, खोज कर रहे थे। अब वह पाते हैं कि संस्कृत एक ऐसी लैंग्वेज है जिसमें जो एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष में गया है जो बृहस्पति पर गया है शनि पर गया है या चंद्रमा में गया है चंद्रमा तो बहुत नजदीक है उसमें कोई समस्या नहीं है लेकिन और कहीं पर जहां गया है उसी से संवाद स्थापित करते हैं। लेकिन चंद्रमा भी यहां से 3,85000 किलोमीटर की दूरी पर है तो हम 485 किलोमीटर तक तो किसी भी भाषा में संदेश दे सकते हैं। इसलिए आपका जो टीवी चैनल है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है, डिजिटल मीडिया है, जिसमें ब्रॉडकास्ट करेंगे तो यह इलेक्ट्रॉनिक मैग्नेट वेब के माध्यम से यह इसी वायुमंडल में है तो उसमें समय लग जाएगा तो आप यहां पर बोलिए वहां पहुंचने में एक डेढ़ मिनट का अंतर हो जाता है।
लेकिन यह हिंदी में फ्रांस में इंग्लिश में सभी में आएगा धरती से 485 किलोमीटर के दायरे में शब्द जो है गुंजायमान रहते हैं लेकिन 485 के बाहर जो है यह काम नहीं कर पाते हैं लेकिन संस्कृत जो सूर्य से निकली हुई भाषा है वह पूरे सोलर सिस्टम में आसानी से फ्रिक्वेंटली चली जाती है।
इसलिए शब्द कभी मिटता नहीं क्योंकि शब्द में ताकत बहुत होती है, क में जो ताकत है वह ख में नहीं है सबकी अपनी अपनी ताकत है जैसे आपकी ताकत अलग है, मेरी ताकत अलग है। वैसे हर अल्फाबेट की ताकत अलग-अलग है वह जब चलते हैं तो कभी क आगे हो जाता है तो कभी ख आगे हो जाता कभी ग आगे हो जाता है। तब उसका सिक्वेंस बदल जाता है।
रशिया ने इसके लिए उसको डिटेक्ट करने के लिए बहुत प्रयास किया, रशियन ने सोचा कि गीता अगर कृष्ण ने कही है तो उसको हम रिकॉर्ड करें, 30- 35 साल उसके ऊपर लगाए, लेकिन उसके पकड़ने में यह हुआ कि जो श्लोक है, जो मंत्र है वह उसके पकड़ में नहीं आ पाए। उसने बहुत कोशिश की शब्द तो गुंजायमान हैं, शब्द से वाक्य बनाना उसमें थोड़ा सा अंतर आ जाता है। हर शब्द की अपनी ताकत होती है, अपनी शक्ति होती है, उस शक्ति के हिसाब से वह ट्रेवल करता है। तो कभी बोले अक्षर आगे हो जाते हैं सही शब्द नहीं बना पाते उसी में उनको यह समस्या आ जाती है।
सवाल:- वायुमंडल से जो ओ३म् (ॐ) शब्द की जो ध्वनि को रिकॉर्ड किया गया यह किसने किया था कब किया था यह कैसे हैं बताएं?
जवाब:- देखें यह बिगबैंग हुआ था आज से 13.7 बिलियन वर्षों पहले तो उसके बाद में कॉस्मिक बैकग्राउंड रेडिएशन निकला था जिसे हम CMBR भी कहते हैं। आप यहां पर आतिशबाजी करते हैं तो जो ध्वनि निकलती है और वह ध्वनि निकलकर विलीन हो जाती है आकाश में, क्योंकि आकाश ध्वनि को ग्रहण कर लेता है।
वह ध्वनि नष्ट नहीं होती है, ध्वनि गुंजायमान रहती है। जिस समय बिग बैंग हुआ था, उस समय जब वह फटा था। उसमें एक ध्वनि हुई थी प्रचंड रूप से पूरे ब्रह्मांड में वह फैल गया था। उस समय कॉस्मिक बैकग्राउंड रेडिएशन ध्वनि निकली तो 100 मेगाहर्ट्ज पर निकली पुर्दह ध्वनि 67 ऑक्टोवेब पर ही गुंजायमान है तो नासा ने विचार किया कि इसे रिकॉर्ड किया जा सकता है।
इंप्रोवाइजर इंस्ट्रूमेंट बनाए गए, क्योंकि वह नॉर्मल इंस्ट्रुमेंटल से ग्रहण नहीं हो सकते थे। जो इंस्ट्रूमेंट बनाए गए, उन के माध्यम से उस ध्वनि को पकड़ने का प्रयास किया गया और मानव को सुनाने के लिए उसे तेज किया गया तो 20 डेसीबल तक लाया गया नेचुरल ध्वनि तो आप सुन ही नहीं सकते। वह बहुत ही मध्यम स्वर में होती है, जो आपकी नॉर्मल सुनने की क्षमता होती है, वह उसे अरबों खरबों नीचे का स्वर होता है। जिसे आप सुन नहीं सकते हैं। तब उसे 20 डेसिमल तक ऊपर उठा कर लाया गया और 1964 में इसको रिकॉर्ड किया गया। वह जो ध्वनि है वह निरंतर गुंजायमान है। वह ध्वनि कुछ और नहीं है यह ओ३म् (ॐ) है। यह मानव के द्वारा उच्चारण की गई ध्वनि नहीं है। निरंतर वह ओ३म् (ॐ) जैसा साउंड हमें प्रतीत होता है। जो हम बोलते हैं, वह दूसरे तरीके से बोलते हैं। लेकिन जो प्राकृतिक ध्वनि है वह एक लिरिक्स में निरंतर चलती है।
सवाल:- भारत के अंदर ग्रंथ हम पढ़ते हैं उसमें ओ३म् (ॐ)जिकर है कोई भी मंत्र को पढ़ते हैं जैसे ॐ नमः शिवाय यह ओ३म् (ॐ) सबसे पहले ही क्यों आता है?
जवाब:- देखिए हम दो तीन जगह से ओ३म् (ॐ) का उच्चारण करते हैं लेकिन वैसे तो बहुत जगह हैं, परंतु 3 स्थान बहुत महत्वपूर्ण हैं एक तो कंठ है, एक तालु है, एक हमारे होंठ हैं, बोलने की प्रक्रिया में। यह 3 अंग बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। जो ओ३म् (ॐ) शब्द है उसका कोई अर्थ नहीं है। ओ३म् (ॐ) इन तीनों का योग है इन तीनों को जोड़ दीजिए। जब हम आ बोलेंगे तो यह कंठ से निकलता है, और हम ऊ बोलेंगे तो तालू से निकल रहा है, और मां बोलेंगे तो वह होठ से निकल रहा है ओ३म् (ॐ) हो गया। ओ३म् (ॐ) की प्रक्रिया बोलने में समाहित है और शब्द ही ब्रह्म है इसलिए ओ३म् (ॐ) का मतलब ही ईश्वर कर दिया गया कि यह ईश्वर है। यह ईश्वर का नाम है।
इस सीरीज का अगला भाग आपके साथ जल्द साँझा करेंगे आप बने रहिये ज्ञान ज्योति दर्पण के साथ और कमेंट करके बताइये की आपको ये एपिसोड कैसा लगा। आप इस एपिसोड को देखने के लिए हमरे यूट्यूब चैंनल ज्ञान ज्योति दर्पण पर भी देख सकते है। इसका लिंक आपको इस खबर में दिया गया है। ज्ञान ज्योति दर्पण की ये प्रस्तुति आपको कैसी लगी इस पर अपने सुझाव हमें कमेंट बॉक्स में लिख कर जरूर बताए।
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