77वां वार्षिक संत समागम: सेवा, समर्पण, विचार आत्म-सुधार विस्तार की ओर: सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि सेवा में शुद्ध और समर्पित भाव होता है। हम अक्सर अपने विचारों और आदतों में सीमित रहते हैं। इसे उदाहरण द्वारा समझाया गया, जैसे पानी के स्रोतों को देखकर किसी का दृष्टिकोण ग्लास, बाल्टी, तालाब, या समुद्र तक सीमित हो सकता है।

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  • सच्चाई को पहचान कर भ्रमों से मुक्ति पाएं:निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज
  • सत्य एवं प्रेम का असीम विस्तार 77वें निरंकारी समागम में उमड़ा मानव परिवार

गन्नौर, सोनीपत, अजीत कुमार: सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि सेवा में शुद्ध और समर्पित भाव होता है। सेवा में स्वार्थ या किसी लाभ की कामना जुड़ जाती है, तो वह सेवा नहीं रहती। सेवा का उद्देश्य दूसरों के प्रति प्रेम और समर्पण प्रकट करना है, न कि किसी को प्रभावित करना। सेवा के दौरान चालाकियों और स्वार्थ को रोककर, इसे ईमानदारी से करना ही सच्ची सेवा है।

गन्नौर-समालखा हल्दाना बॉर्डर स्थित निरंकारी आध्यात्मिक स्थल पर आयोजित तीन दिवसीय समागम में लाखों श्रद्धालुओं को सतगुरु माता जी ने रविवार की रात को मंगलकारी प्रवचनों की रसधारा प्रवाहित की। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि सेवा में शुद्ध और समर्पित भाव होता है। हम अक्सर अपने विचारों और आदतों में सीमित रहते हैं। इसे उदाहरण द्वारा समझाया गया, जैसे पानी के स्रोतों को देखकर किसी का दृष्टिकोण ग्लास, बाल्टी, तालाब, या समुद्र तक सीमित हो सकता है। इसी तरह, हमें अपने जीवन में सोच और समझ का विस्तार करना है। कुएं के मेंढक की तरह अपनी सीमित सोच को सच्चाई मान लेने से जीवन का वास्तविक स्वरूप छूट सकता है।

77th Annual Sant Samagam: Service, Dedication, Thoughts, Self-Improvement, Expansion: Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
77वां वार्षिक संत समागम: सेवा, समर्पण, विचार आत्म-सुधार विस्तार की ओर: सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज .

आदतों में बदलाव लाने और अपनी कमजोरियों को पहचानकर उन्हें दूर करने का प्रयास भी विस्तार का एक रूप है। यदि हम जानते हैं कि कोई आदत गलत है और फिर भी उसे छोड़ने में असमर्थ हैं, तो यहां आत्म-अवलोकन की आवश्यकता है। अपनी सोच और आदतों को सकारात्मक दिशा में विकसित करना जरूरी है। अक्सर, हमारी सोच केवल हमारे फायदे तक सीमित होती है। लेकिन अगर हमारी सोच दूसरों के लाभ को भी शामिल करे, तो यह सच्चे विस्तार का प्रतीक होगा। अपने दृष्टिकोण को लचीला बनाना और दूसरों के विचारों को खुले दिल से अपनाना है। माता जी ने एक कहानी के माध्यम से समझाया कि जिद्दी सोच कैसे हमें वास्तविकता से दूर रख सकती है। जीवन में विचारों का आदान-प्रदान और नई सीखों को अपनाने की क्षमता हमें आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाती है।

घरेलू हिंसा का उदाहरण देते हुए माता जी ने कहा कि सहनशीलता का मतलब किसी अन्याय को चुपचाप सहन करना नहीं है। यह सोच कि पीड़ा सहने से हम महान बनेंगे, गलत है। शरीर और मन, दोनों का सम्मान जरूरी है। आत्म-सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार हर व्यक्ति का है। पीड़ा को सहने की आदत लगाना, इसे स्वीकार करना नहीं है, बल्कि इसे दूर करने का साहस होना चाहिए।

आध्यात्मिकता और जीवन का वास्तविक विस्तार
आध्यात्मिकता को अपनाने से जीवन का हर पहलू विस्तारित होता है। संगत में आकर ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना और संतों के वचनों को सुनना, हमारी सोच को व्यापक बनाता है। जब हम इस निराकार से जुड़ते हैं, तो जीवन के हर रंग को अपनाते हुए उससे अलग भी रहना सीखते हैं। जीवन की अस्थिर सच्चाइयों के विपरीत, परमात्मा ही एकमात्र अटल सत्य है। यह निराकार हर समय, हर स्थिति में मौजूद है। इसे पहचानकर, हर व्यक्ति अपने जीवन को सही दिशा में विस्तार कर सकता है।

77th Annual Sant Samagam: Service, Dedication, Thoughts, Self-Improvement, Expansion: Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
77वां वार्षिक संत समागम: सेवा, समर्पण, विचार आत्म-सुधार विस्तार की ओर: सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज .

आत्मज्ञान का मार्ग: स्वयं को पहचानने की यात्रा
निरंकारी राजपिता जी महाराज ने कहा कि 77वें समागम में भाग लेना संतों और श्रद्धालुओं के लिए अनोखा अवसर है। यह समागम जीवन को गहराई और विस्तार प्रदान करता है। सद्गुरु की कृपा और शिक्षाओं ने मानव अस्तित्व को असीम और गौरवशाली बना दिया है। सच्चा स्वार्थ अपने अस्तित्व को पहचानने में है। सद्गुरु सिखाते हैं कि जीवन का अर्थ समझने के लिए हमें अपने स्वार्थ से परे जाकर मानवता की सेवा करनी है। जैसे गौतम बुद्ध ने आत्मज्ञान के लिए सांसारिक सुखों का त्याग किया, वैसे ही सद्गुरु परोपकार को जीवन का उद्देश्य मानते हैं।

सद्गुरु कहते हैं कि भक्ति केवल साधन नहीं, बल्कि साध्य है। जब भक्ति जीवन का केंद्र बन जाती है, तो सांसारिक सुख गौण हो जाते हैं। उनकी शिक्षाएं आत्मज्ञान और भक्ति के माध्यम से जीवन को सीमित से असीम बनाती हैं। यह यात्रा हमें अपनी सच्ची पहचान से जोड़कर जीवन को सार्थक बनाती है।

77th Annual Sant Samagam: Service, Dedication, Thoughts, Self-Improvement, Expansion: Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
77वां वार्षिक संत समागम: सेवा, समर्पण, विचार आत्म-सुधार विस्तार की ओर: सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज .

कायरोप्रैक्टिक शिविर और स्वास्थ्य सेवाएं
77वें निरंकारी संत समागम में आधुनिक कायरोप्रैक्टिक तकनीक के जरिए नि:शुल्क स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया जा रहा है। प्रतिदिन 3,000 से 4,000 लोग इस तकनीक का लाभ उठा रहे हैं। अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, स्पेन, फ्रांस और भारत के 25 डॉक्टरों की एक टीम डॉ. जिम्मी नंदा के नेतृत्व में सेवाएं दे रही है।
कायरोप्रैक्टिक तकनीक रीढ़ की हड्डी पर आधारित है, जो शरीर की सभी नस-नाड़ियों का केंद्र मानी जाती है। डॉ. जिम्मी नंदा के अनुसार समागम स्थल पर पहली बार 100 बिस्तरों वाला अस्पताल बनाया गया है, जिसमें आईसीयू और चार वेंटिलेटर की सुविधा है। 40 एम्बुलेंस उपलब्ध हैं, जिनमें से 30 स्वास्थ्य विभाग द्वारा और 10 मिशन द्वारा प्रदान की गई हैं। सभी मैदानों में पांच डिस्पेंसरियां भी कार्यरत हैं। यहां प्रतिदिन 20,000 मरीजों को नि:शुल्क दवाइयां दी जा रही हैं।

होम्योपैथी: ग्राउंड ए और सी में होम्योपैथी की डिस्पेंसरी में प्रतिदिन 3,000-4,000 मरीज देखे जा रहे हैं। फिजियोथेरेपी: फिजियोथेरेपी के लिए 15 मशीनें उपलब्ध हैं। माइनर ओटी: छोटे ऑपरेशन के लिए माइनर ओटी की सुविधा भी प्रदान की गई है। विशेषज्ञ सेवाएं: दिल, ऑर्थोपेडिक, छाती संक्रमण, आंखों और ईएनटी के मरीजों का उपचार किया जा रहा है। इन सेवाओं को 1,000 सर्जन, मेडिकल और पैरामेडिकल स्टाफ की टीम द्वारा संचालित किया जा रहा है, जिससे समागम में स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर उच्चतम बना हुआ है।

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