सोनीपत: क्रोध, अहंकार, लोभ पर नियंत्रण पाकर हम बाहरी शत्रुओं से बचें: डॉ. मणिभद्र मुनि

डॉ. श्री मणि भद्र मुनि जी महाराज ने कहा कि अहंकार भी एक ऐसी भावना है जो हमारे जीवन में अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है। जब हम अपने आप को दूसरों से बड़ा मानने लगते हैं, तो हम न केवल मित्रता खोते हैं, बल्कि नए दुश्मन भी बना लेते हैं।

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सोनीपत, (अजीत कुमार): नेपाल केसरी राष्ट्र संघ मानव मिलन के संस्थापक डॉ. मणिभद्र मुनि जी महाराज ने कहा कि क्रोध मानव के भीतर एक स्वाभाविक भावना है, लेकिन जब यह अनियंत्रित हो जाता है, तो यह न केवल हमारे जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि हमारे आस-पास के लोगों के जीवन में भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। अगर हम अपने क्रोध को वश में कर लें, तो हम न केवल बाहरी शत्रुओं से बच सकते हैं, बल्कि अपने संबंधों और मानसिक स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ कर सकते हैं। डॉ. मणि भद्र मुनि जी महाराज गुड मंडी स्थित श्री एसएस जैन सभा जैन स्थानक में आयोजित चातुर्मास के दौरान उपस्थित भक्त जनों को संबोधित कर रहे थे।

डॉ. श्री मणि भद्र मुनि जी महाराज ने कहा कि अहंकार भी एक ऐसी भावना है जो हमारे जीवन में अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है। जब हम अपने आप को दूसरों से बड़ा मानने लगते हैं, तो हम न केवल मित्रता खोते हैं, बल्कि नए दुश्मन भी बना लेते हैं। अहंकार का अंत करना कठिन है, लेकिन यह संभव है। अगर हम अपने अहंकार को खत्म कर दें, तो जीवन में शांति और संतुलन आ जाएगा। अहंकार की जगह विनम्रता और सहयोग को अपनाने से हम दूसरों के साथ बेहतर संबंध बना सकते हैं।

उन्होने कहा लोभ एक अन्य प्रमुख भावना है जो हमारे जीवन में दरार डाल सकती है। जब हम केवल भौतिक संपत्तियों और धन के पीछे भागते हैं, तो हम अपने प्रियजनों को खो देते हैं। अगर हम अपने जीवन से लोभ को समाप्त कर दें, तो हमारे मित्र कभी भी हमसे दूर नहीं होंगे। यह समझना आवश्यक है कि सच्चे संबंधों में मूल्यवान चीजें वे भावनाएं और अनुभव हैं, जो हम एक-दूसरे के साथ सांझा करते हैं, न कि भौतिक वस्तुएं।

 

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