शिक्षाविद प्रमोद कौशिक की कलम से: ज्ञान का उजाला है गुरु

गुरु शब्द दो व्यंजनों का स्वरों का जिसमें समाहार है।

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ज्ञान का उजाला है गुरु

गुरु शब्द दो व्यंजनों का
स्वरों का जिसमें समाहार है।
गुरु अनोखा, गुरु है अद्भुत,
इसकी महिमा अपरंपार है।

अज्ञान का द्योतक है गु
महाज्ञान रू कहलाता है
मिटे अंधेरा होय उजाला
आकर गुरु जब सहलाता है
बिन गुरु ज्ञान असंभव है
यहां गुरु मिले तो साकार है।

गुरु अनोखा, गुरु है अद्भुत
इसकी महिमा अपरंपार है।

करे जो धोखा, कोई गुरु से,
नहीं सफलता वह पता है।
गुरु को धोखा देने वाला,
गुरु से शापित हो जाता है।
छल से पाई विद्या खोकर ,
करण भी देखा लाचार है।

गुरु अनोखा गुरु है अद्भुत
इसकी महिमा अपरंपार है ,
इसकी महिमा अपरंपार है।

काव्य रचना: प्रमोद कौशिक
शिक्षाविद, कोऑर्डिनेटर रौनक पब्लिक स्कूल
बीएसटी कालोनी, गन्नौर, सोनीपत हरियाणा

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