कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: उथल – पुथल है या प्रकृति की छीना जोरी ……

गर्मी पड़ी इस बार 50 से. डिग्री के उस पार, पाली जोधपुर में मचा था हा हा कार।

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उथल – पुथल है या प्रकृति की छीना जोरी ……
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गर्मी पड़ी इस बार 50 से. डिग्री के उस पार,
पाली जोधपुर में मचा था हा हा कार
सारा जीव जगत हुआ गर्मी से बै हाल
लू से जान गवाई अनेकों ने बूजर्गों का हुआ बुरा हाल
अब मान्सून सक्रिय हुआ तो भी जीव जगत
बिजली बरसात से हुआ बै हाल
बिजली कड़की बादल गर्जें
दिल्ली डर गई, एक दिन में बरखा बरसी
240 मि. ली. के उस पार…..
हरिद्वार में बरखा बरसी जोर से, बह गये रिक्षा और कार
अब सोजत पाली का है यही है बुरा हाल
पाली में 45 बर्षों का टूटा रेकार्ड
यातायात बंद हुई मच गया हा हा कार
कालेज स्कूल भर गये पानी से लबालब
रेल्वे ट्रेक का नहीं अता पत्ता पानी बह रहा अमाप
हेमावास बांध जवाई बांध भर रहा है तेजी से लोगों में है समाधान
देख बढ़ती रबी फसलों से किसान है खुशहाल
इस बार मान्सून का मिजाज लगता है बदला-बदला सा
रातों में देखू तो तारों की चमक फीकी फीकी
ध्रुव तारा अब देखू तो दिखे धूंधला धूंधला
तारा मण्डल का आभा भी लगता है बदला बदला
प्रकृति की तोड़ मोड़ में व्यस्त हैं सारी मानव जाती
हम प्रगति कर रहे है कहता है जग सारा
नहीं करता कोई आगामी पिढ्ढी का सोच-विचार
पहाड़ फोड़ा पत्थर बेचा नदी खोदी रेती बेची
पेड़ काटे असंख्य हाईवे बनाये सिक्स ट्रेक अनेक
बारुद फोड़ने की लगी होड सी, तू बड़ा के मैं बड़ा
बोअर से पृथ्वी को किया छीन्न भिन्न, हरकत छोड़ी न एक
ये क्या कर दिया पृथ्वी के मानव तूने अब तू ही यह देख
अब प्रकृति ने भी अपना रुख बदला
बादल गरजे बादल बरसे, जीव जगत है बै हाल….
ये क्या हो गया इस बार…..?
ये उथल-पुथल है या प्रकृति की छीना जोरी…?
ये सजा है की मजा,
कुछ समझ नहीं आता,
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जय श्री विश्वकर्मा जी की
लेखक: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र

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