सोनीपत: पर्यावरण की सुरक्षा में वन्यजीवों की भूमिका महत्वपूर्ण- श्यो प्रसाद
श्यो प्रसाद ने कहा कि वन्य जीव संरक्षण का अभिप्राय प्रकृति में मौजूद वन्यजीवों को सभी प्रकार से बनाए रखना तथा पारिस्थितिकी में उनके जीवन संसाधनों की रक्षा करना है। संरक्षण का अर्थ है, सुरक्षित बनाए रखना।
सोनीपत, (अजीत कुमार): मृत्यु की तरह विलुप्ति भी प्रकृति का एक शाश्वत नियम है। लेकिन आज जिस तेजी से जीव जंतु विलुप्त हो रहे हैं। वह कहीं ना कहीं मानव गतिविधि से जुड़ा एक चिंता का विषय है। वन्यजीव जैव विविधता को कायम रखते हैं तथा पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित बनाए रखने में मदद करते हैं। यह पर्यटन से आर्थिक स्त्रोत उत्पन्न करते हैं। रंग-बिरंगे पक्षी, जानवर तथा अन्य जंगली जीव पारिस्थितिक तंत्र को सुंदर, आकर्षक, संयमित एवं संतुलित बनाते हैं।
एक सामान्य आदमी वन्यजीवों का अर्थ सिर्फ शेर, बाघ, तेंदुआ, हाथी, गैंडा आदि से लगाता है। जबकि जंगली जानवरों में बहुत से ऐसे छोटे जीव भी सम्मिलित हैं, जिनका पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान है। जिसमें आंख से ना दिखाई देने वाले सूक्ष्म जीव तक शामिल हैं। यह बातें जैव विविधता के बारे में गांव ककरोई में सरपंच रेनू देवी की अध्यक्षता में सभा के आयोजन में हरियाणा राज्य जैव विविधता बोर्ड पंचकूला के जिला समन्वयक सोनीपत श्यो प्रसाद ने कही।
श्यो प्रसाद ने कहा कि वन्य जीव संरक्षण का अभिप्राय प्रकृति में मौजूद वन्यजीवों को सभी प्रकार से बनाए रखना तथा पारिस्थितिकी में उनके जीवन संसाधनों की रक्षा करना है। संरक्षण का अर्थ है, सुरक्षित बनाए रखना। संकटग्रस्त जातियों को विलुप्त होने से बचाना तथा अन्य दुर्लभ और निरीह जातियों को संकटग्रस्त स्थिति में पहुंचने से बचाना। वन्य जीव के नष्ट होने पर हमारा प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाएगा वहीं मानव अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।
एक रिपोर्ट के अनुसार अनुसार भारत में संकटग्रस्त जातियां जिनमें गैंडा, नीलगाय, गिर सिंह, मगरमच्छ, सारंग, कृष्ण सार, चीतल, बारहसिघा, चार सिग वाला बारासिघा, हनसा बर, हवा सील, धूसर, बगुला, पर्वतीय बटेर, भेड़िया, गीदड़, जंगली कुत्ता, धारीदार लकड़बग्घा, चीता, रेगिस्तानी बिल्ली, जंगली बिल्ली, जंगली गधा, कस्तूरी मृग, भारतीय सांड, जंगली भैंसा, उड़ने वाली गिलहरी, काला हंस, काला गरुड़, मोर, तीतर, सफेद आंखों वाली बतख, काली बत्तत, पानी की छिपकली, अजगर, बाज, गीद्ध, सांपों की कई प्रजातियां, हाथी प्रमुख हैं। जिन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। हालांकि बाघों की संख्या में वृद्धि अवश्य हुई है। फिर भी गौतम और गांधी के देश में झूठी आन, बान और शान में पहले मनोरंजन, खाने के मांस के लिए राजा महाराजाओं के द्वारा वन्य जीवो को मारा गया। फिर आज मनुष्य अपनी बढ़ती जनसंख्या, भ्रामक सुरक्षा तथा लालच व लिप्सा में वन्यजीवों के अंगों की तस्करी के कारण वन्यजीवों का विनाश कर रहा है। प्रकृति तभी सुरक्षित है, जब वन और जीव दोनों सुरक्षित और संतुलित रहेंगे। आज बिगड़ते पर्यावरण और पारिस्थिति के लिए वन्यजीवों की बड़ी संख्या में कमी होना प्रमुख है। यहां तक की अपने आंख के सामने प्रतिदिन दिखने वाले कौवा, गौरैया, गिलहरी, मखमली तीज जैसे छोटे जीव समाप्त होते जा रहे हैं और हमें आभास तक नहीं हो पा रहा है। इस अवसर पर रोहताश, बलराज, नरेंद्र, सुशीला,संदीप आदि ग्रामीण भी मौजूद रहें।
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