दीपक आहूजा वालों की कलम से: जीना काफ़ी नहीं

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जीना काफ़ी नहीं

जीना काफ़ी नहीं है, उड़ना भी चाहिए,

अपने निज स्वभाव से, जुड़ना भी चाहिए।

जो पंछी होता तो, ईश्वर के नगर ही जाता,

कुछ नयी ऊँचाइयों को, यह हृदय पा जाता।

जीना काफ़ी नहीं है, अंदर डूबना भी चाहिए,

प्रेम की इन लहरों से, जूझना भी चाहिए।

जो मछली होता तो, प्यार में गोते खाता,

चाहतों के सागर से, तेरा ही अक्स ढूँढ लाता।

जीना काफ़ी नहीं है, आनंदित चलना भी चाहिए,

इस धरती को, सद्कर्मों से बदलना भी चाहिए।

जो प्रभु ने इंसान बनाया, ज़मीन पर ही रहूँगा,

धीमेधीमे हृदय की हर बात, कहता रहूँगा।

दीपक आहूजा लेखक, कवि, उद्यमी और व्यवसायी।। 

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