कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: भाव विभोर हो जाता हूं

कवि यह एक शास्त्र सहमत ज्ञान की गहरी विचारधारा का नाम है, जो समाज सेवा करते करते व शास्त्रों का गहराई से अध्यन करते करते इतना निर्मल पवित्र मन धारण कर लेता है की वह किसी का अहित तो करना दूर की बात है पर अपने मन में यह विचार भी नही ला सकता है।

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✍️ एक कवि की अलोकिक दुनिया का रहस्य कवि अपनी शब्दावली में अपने ही मुखार बिन्दू से सुनाते हुएं एक दृश्य (पिक्चर) खड़ा कर दिखाता है अपनी कलम से…….

नई नई कविताएं लिखने की कल्पनाओं में भाव विभोर हो जाता हूं , संसार को भूलकर शून्य प्रवाह में जब बह जाता हूं, माँ शारदे के चरणो में पहुंचकर एक अलग विचित्र अलोकिक दुनियां में चला जाता हूँ , ऐकान्त वास हेतु बंद कमरे में कविता लिखने बैठ जाता हूं…….माँ के संकेतों पर ह्रदय से उठने वाले भाव कागज पर रेखांकित कर जब होश आता है तब वास्तविक दुनिया में लौट आता हूं , तो संसार सागर दृष्टि गोचर हो जाता है, तब भाव बदल जाते है, पाता हूं की यह तो वही मोह माया वाला संसार सागर है जिसमे मैं रोज रोज रोजी रोटी की तलाश करता हूँ….

कवि यह एक शास्त्र सहमत ज्ञान की गहरी विचारधारा का नाम है, जो समाज सेवा करते करते व शास्त्रों का गहराई से अध्यन करते करते इतना निर्मल पवित्र मन धारण कर लेता है की वह किसी का अहित तो करना दूर की बात है पर अपने मन में यह विचार भी नही ला सकता है।

कवि हमेशा दुसरों की प्रसन्नता में ही अपनी प्रसन्नता मानता है, समाज में घटीत घटनाओं का चित्रीकरण कर अपने ह्रदय से उठने वाले भाव लेख, कविताओं के माध्यम से समाज के सामने प्रस्तुत करता है, कवि कलम को माँ शारदे की आज्ञा समाज हित में लिखने की ही मिलती है, कवि जो भी लिखता है वह समाज को ध्यान में रखकर ही लिखता है, समाज में होने वाले अपराधों व कुरितीयों का वह अपने लेखन में क्रांतिकारी विरोध समय समय पर दर्शाता रहता है वह समाज को हर समय जाग्रत करता रहता है यही कवि की खासियत होती है।

कुछ मनोरंजन करना, कराना, कुछ चुटकुले बाजी करना यह आद्दत सी हो जाती है, कौनसा शब्द कहा रखना है यह कला कौशल्य म खास कवि, लेखक के पास मौजूद होता है, यही कला एक कवि को कवि बनाएं रखती है। कवि यह पाच तत्वों से बना मिट्टी का पूतला ही है साहब, फरक सिर्फ इतना ही है की वह माँ शारदे का उपासक है इसलिए कुछ अलग लिख पाता है।

कवि जीवन यात्रा का समय पुरा कर पंचतत्वों में विलीन हो जाता है, मगर साहित्य, कविताएं यह अमर अमिट छाप अपने पीछे छोड़ जाता है, जिसको लोग सदियों तक गुनगुनाते रहते है व सजग ज्ञान पाते है, यह साहित्य की सिख होती है, इसलिए साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है ।

 

मैं रहू ना रहू
कविताएं नई नई समाज में
आती रहनी चाहिए
साहित्य ही समाज का
दर्पण होता है
यह आता रहना चाहिए
भाव…..?
लेख, कविता, ज्ञान वर्धक सतसाहित्य
साहित्य प्रेमी…..एक कवि की भावनाओं का लेखा जोखा
माँ शारदे चरणम् गच्छामि
✍️………. ✅

जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
कवि: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मो: 9421215933

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13 Comments
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