कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: जिज्ञासा से औत प्रौत है जिंदगी
जिंदगी को मैंने खेल समझा था, खुद को माना था खिलाड़ी।
जिज्ञासा से औत प्रौत है जिंदगी
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जिंदगी को मैंने खेल समझा था
खुद को माना था खिलाड़ी
जब जिंदगी की राह पर चलने लगा
अनुभव अजब आने लगे
संसार सागर है
कभी यह सुन रखा था
सागर में उतरकर देखा तो
पानी पर चलना था नही इतना आसान
गहराई से अन्जान था
फिर भी राहगीर बन चलता रहा
सागर की लहरों के थपेड़े झेलता रहा
रुकना खतरों से ना खाली था
चढ़ाव उतार बहुत देखे
अनुभव अजब आये है
यही है खासियत है जिंदगी की
कर्ज वो भी चुकाने पड़ते हैं ,
जो हमने अपने लिए लिये ही नहीं…
जिंदगी तजूरबै नए नए देती है सदा
इसी का नाम जिंदगी है!! दूर से देखा तो सुहानी लग रही थी
नजदीक से देखा तो रास्ता बड़ा ही दुर्गम था
चढ़ उतार बहुत देखे है
देखी है धूप साव बहुत
दिन का उजाला भी देखा
देखी रात गनघोर अंधेरी
जो नही होना था वो हादसा
वो होकर रह गया है
जो होना था वो
अधूरा ही रह गया है
मन जिज्ञासा से औत प्रौत था
बात अधूरी रह गई
धैर्य का साथ मिला अखण्ड
जिन्दगी की नैया पार लगा दी
एकाग्रता मन में ठान रखी थी
जिंदादली का नाम है जिंदगी
. रास्ते खड़तर है बहुत
मैंने सोचा था जितना
आसान नहीं है जिंदगी
जिज्ञासा से औत प्रौत है जिंदगी
फिर भी रोज निकल पड़ता हूँ
अपनी धून में,
बाधाओं से ना डरा हूँ मैं
हर बाधा को पार करते चला
कब रास्ता कटा समझा ही नही
जिज्ञासा, नेत्रत्व, एकाग्रहता, कर्म निष्ठा का मिला सहारा तो……..
जिंदगी हुई आसान
यही जिंदगी का रहस्य जानने में सारी उम्र खपा दी
नत मष्तक हूँ जन्म दाता के आगे
नैया हमरी पार लगा दी
जिज्ञासा से औत प्रौत है जिंदगी
जिंदगी इतनी आसान ना थी
जितना मैने समझा था………..
🙏जय श्री विश्वकर्मा जी🙏
✍लेखक: दलीचंद जाँगिड़ सातारा
पैत्रिक गांव
खौड जिला पाली राजस्थान
श्री विश्वकर्मा मंदीर सातारा शहर महाराष्ट्र
मो: 9421215933
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