कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मेरे जीवन का संघर्ष

मैं मारवाड़ से निकलकर सन 1967 से महाराष्ट्र में रह रहा हूं, लेकिन मारवाड़ समय-समय पर आते जाते रहा हूं। आज मेरी आयु 68 वर्ष की चल रही है। इतने लम्बे समय (55 वर्ष) में जब से समझ आई है, तब से सुनने में आता रहा है कि जब (240 वर्ष पूर्व) मारवाड़ में अकाल पड़ रहे थे।

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लेखक की कलम से…….
हा अब बात करे की परिवार क्यू टूट रहे हैं इस पर थोड़ा कलयुग की परशाई पड़ी है इस विषय पर बात कर लेते है…..

मैं मारवाड़ से निकलकर सन 1967 से महाराष्ट्र में रह रहा हूं, लेकिन मारवाड़ समय-समय पर आते जाते रहा हूं। आज मेरी आयु 68 वर्ष की चल रही है। इतने लम्बे समय (55 वर्ष) में जब से समझ आई है, तब से सुनने में आता रहा है कि जब (240 वर्ष पूर्व) मारवाड़ में अकाल पड़ रहे थे। तब माहेश्वरी समाज जो फलौदी, औसीया, जैसलमेर, बिकानेर से वह नागौर जिले में डैगाना, नागौर व किशनगढ़ से उठकर महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडु , बंगाल, आसाम तक बाहर कपड़े का व्यापर करने हेतु निकल पड़े थे। तब कहते है बस रेलवे की सुविधा भी नही थी। इसलिए पैदल एक-एक गांव रुकते व कपड़े बेचते बेचते अपने (माहेश्वरी समाज का झूंड) समाज के समूह के साथ आगे बढते अनेक प्रदेशों में चले गये। वह जहां अच्छा लगा (जिस गांव या शहर में) वहां रुककर आजुबाजु के चार-आठ गांवो में कपड़े की गठड़ी बांधकर कपड़े का व्यापर करते करते सब ने समूह के साथ व समय गुजरने के साथ साथ स्थाई निवास करने का फैसला कर वही बस गये है। यह बात मैं नही कह रहा हूं बल्कि उसी समाज के बुजुर्ग जो आज से 30 या 40 वर्ष पहले मुझ से बातें करते समय कहा करते थे। आज वे बुजुर्ग भी इस दुनिया में नहीं रहे, मगर उनके साथ मेरी हुई अनेक बातों का मैं यहां जिक्र कर रहा हूं……

मैं उनसे खाली समय मिलने पर उनके साथ बैठा करता था। तब मेरी आयु 18 से 20 वर्ष की रही होगी, उस समय मैं भी फर्निचर मेकर्स ही था। वह इस माहेश्वरी समाज के घरों में व दुकानों में काम के ठेके लिया करता था। तब की यह बातें आज इस विषय पर नमूद कर रहा हूं जी…..

मैं प्रश्न पूछता था कि उनसे वह वे मुझे मारवाड़ छोड़ने से लेकर यहां (महाराष्ट्र में) स्थाई होने तक की कहानी सुनते थे। वह कहते थे कि अब हमारी यह पांचवी पिढ्ढी यहां पर हो गई है जो आज समय पाकर सात पिढ्ढी तक पहुंच गई है ….

इसके बाद समय चक्र चलता रहा। वह 120 वर्ष पहले जैन समाज के कुछ परिवारों को बाहर अनेक प्रदेशों में व्यापर के निमित मारवाड़ छोड़कर बाहर आने की प्रथा शुरु हुई। वह छह महिना एक भाई व्यापर (दुकान पर) पर रहता था, वह दुसरा भाई मारवाड़ में किराणा कपड़े की दुकान सम्भाला था। धीरे-धीरे समय पाकर जैन समाज भी पुरे परिवार के साथ प्रदेशों में स्थाई हो गये है। यह वाक्या तो मैंने अपनी आंखो से देखा है। वह बहुत कुछ जैन समाज के स्थाई होने की बातें उनकी जुबानी से सुनी हुई है …..

अब इसके बाद अन्य जातियों को भी प्रदेश में आते हुए देख रहा हूं। जिसमें ज्यादातर ब्राह्मण, सुथार, सिरवी, चौधरी, देवासी, व अन्य अनेक जातीयों के लोग भी वह इसके बाद तो मारवाड़ से बाहर आने का ताता सा लग गया। वह वर्तमान में तो करीबन मारवाड़ की सभी जातियों (सभी समाजों के लोग) के लोग गुजरात से लेकर तमिलनाडु तक स्थाई रुप से रहने लगे है। वह आज परिस्थिति ऐसी हो गई है कि इनकी नवी पिढ्ढी (इनके लड़के) तो पढाई व नौकरी के बहाने विदेशों में चले गये है वह यह क्रम शुरु है ……

कितने बातें करु उतनी थोड़ी ही कहलायेगी….

आज राजस्थान की कुल जनसंख्या का 35 प्रतिशत जन संख्या मारवाड़ से बाहर रह रही है यह सत्य घटना है। आप चाहो तो पता लगा लेना….

उदाहरण के तौर पर मेरे पाली जिले के मेरा गांव खौड का उदाहरण पेश करता हूं कि मेरे गांव में 40 प्रतिशत घर ताले लगाकर बंद पड़े है। वह जैन समाज के 500 घरों पर ताले लटक रहे है व 60 घर माहेश्वरीयों के थे। जब से वे लोग प्रदेश गये है, तब से वापस गांव (मारवाड़) की तरफ लौटे ही नहीं है। वह उनके घर खंण्डहर हो गये। वह ताले व दरवाजे छड़ गये है, यह हकीकत है…..

अब कारणों का जब पता लगाने की कोशिश करते है। तब राजस्थान में पानी की कमी के कारण मजदुरी के सही दाम नहीं मिल रहे है व साथ ही पैसा कमाने की होडा होड (लालचा) वह एक तारीख को हर महीने आने वाले घर खर्च के बिलों की भरमार हो सकती है। इसलिए पैसा कमाने के चक्र में प्रदेशों में रहने के कारण परिवार के प्रति व समाज के प्रति प्रेम भावना कम होती दिखाई दे रही है, यह भी एक प्रमुख कारण हो सकता है…..

परिवार बिखर रहे है। वह अलग अलग शहरों में वह बाहर देशों में नौकरी ज्यादा पगार वाली पाने की तीव्र इच्छा शक्ति का भी यह परिवर्तन दौर चल रहा है। इसीलिए परिवार को छोड़कर लोग दूर दूर निवास कर रहे है। दिनों दिन जोईन्ट फैमेली की प्रथा लूप्त होती सी दिखाई दे रही है। वह आगे चलकर सिर्फ दो ही जाती बची रहेगी। यह ट्रेन्ड आने वाला है वह है एक जाति होगी स्त्री व दुसरी पुरुष जाति ही बचेगी ऐसा प्रतित हो रहा रहा है।

 

लेखक:- दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
पैत्रिक गांव
खौड जिला पाली राजस्थान
मो:-9421215933

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