डॉ. ज्योति माने से जानिये: रत्नों के सहारे अपनी किस्मत बदलने चला इंसान
जर्मन लोगों में आज भी बालक के गले में अंबर पहन नेकी प्रथा है। यूनानी और यहूदियों की मान्यता है कि नीलम पहनने से जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है।
मुंबई/जीजेडी न्यूज: युरोप आदि पश्चिमी देश शुरू शुरू में मोती, अंबर, माणिक, बिल्लोर वगैरा कीमती पत्थरों को मानते थे और आज भी मानते हैं। बाईबल में बारह भिन्न भिन्न रत्नों को मान्यता थी। जर्मन लोगों में आज भी बालक के गले में अंबर पहन नेकी प्रथा है। यूनानी और यहूदियों की मान्यता है कि नीलम पहनने से जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है। रोमन स्त्रियाँ पति प्रेम चिरस्थायी रहने के लिये नीलम पहनती है। यहां तक के रस जैसे भगवान पर श्रद्धा न रखने वाले कम्युनिस्ट देश में भी अलेक्झांड्रा (हेमवैदूर्य) को राष्ट्रीय रत्न के रूप में मान्यता दी गई है। संसार भर के लोगों की मान्यता है कि रत्न पहनने से भाग्य बदलता है। गरीब श्रीमंत हो जाता है। दुर्बल शक्तिमान होता है। पागल बुद्धिमान होता है। परिक्षा में अव्वल नंबर आता है। जिसको संतान न हो, उसको संतान की प्राप्ति होती है। जुआ, सट्टा, लॉटरी में धनलाभ होता है। जो भी मनोकामना करो पूरी होती है।
मेरी नजर से यह सभी भ्रामक कल्पनाएं हैं। रत्न कोई भगवान तो है नहीं है कि किसी को भाग्यवान बनाये। समस्त संसार के लोगों की ऐसी मान्यता है कि भाग्य भगवान ही लिखता है। जो भी कुछ होता है उसी की मर्जी से होता है। भगवान की मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता। भाग्य विधाता भगवान ने जैसा भाग्य में लिखा है वैसा ही होना अटल है। किस्मत के लिखे को कोई नहीं मिटा सकता, होनी होकर ही रहती है। अगर यह बात मान भी ली जाय कि जो भी कुछ होता है भगवान ही करता है। मनुष्य प्राणी निमिष मात्र है। भगवान के हाथ की कठपुतली है। अगर यह बात सही है तो फिर अच्छे-बुरे का जिम्मेदार मनुष्य नहीं, स्वयं भगवान ही है। किसी ने खून किया भगवान की मर्जी, किसी ने व्यभिचार किया, बलात्कार किया भगवान की मर्जी, किसी ने चोरी की, डाका डाला, शराब पी, जुवा खेला, जो भी बुरे कर्म किये वह भी भगवान की मर्जी से। उसके जैसे किस्मत में लिखा वैसा ही इन्सान ने किया। तो फिर इन्सान स्वयं गुनहगार नहीं।
फिर सवाल यह पैदा होता है कि भगवान ने नर्क किस लिए बनाया। उस नर्क में किसको डालेगा ?
अगर सब कुछ करने कराने वाला भगवान ही है, तो फिर मानव प्राणी निर्दोष है। अच्छे या बुरे कर्म का उत्तरदायित्व उसपर नहीं। एक मानव प्राणी को जन्म देकर भगवान ही उसके भाग्य में बुरे कुकर्म लिखता है तो स्वयं भगवान ही कसूरवार है मानव नहीं। भाग्य का निर्माण तो इन्सान ने अपनी सुविधा के लिए किया है। मिसाल के तौर पर जब एक क्रिकेट खिलाडी 100 रन बनाता है, तो बड़े गर्व से कहता है कि मैंने सेंचुरी मारी। लेकिन जब वही खिलाड़ी खराब शॉटपर शून्य रन पर आऊट होता है, तब कहता है बैड लक। एक दौलतमंद बडे अभिमान से कहता है मैंने इतनी दौलत कमाई और जब वह बुराईयों के रास्ते दौलत नष्ट करता है, कंगाल हो जाता है तो कहता है क्या करे मेरी किस्मत ही खराब है। मतलब जो भी अच्छे काम किए मैंने किए और बुरे कर्म किये किस्मत की वजह से। इन्सान का स्वभाव धर्म है कि वह अपनी गलतियाँ कभी कबूल नहीं करता। औरों के सर थोप देता है। इन्सान अपनी गलतियाँ थोपने के लिये भाग्य जैसे कल्पनाजन्य सहारे का निर्माण किया है ।
इसी के साथ इस विषय में आगे चर्चा करेंगे।
जय मां दुर्गे
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