77वां वार्षिक संत समागम: भक्त प्रेम व भक्ति भाव से मानवता को समर्पित रहते हैं: सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज
गन्नौर-समालखा हल्दाना बोर्डर पर स्थित मैदानों में शनिवार की रात को मंगलकारी प्रवचनों की रसघारा प्रवाहित कर रते हुए माता ने दिव्य संदेश दिया। रविवार की दोपहर को दिन में सेवादल रैली हजारों सेवादल के भई बहनों ने अपने सतगुरु का नमन किया।
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- चेतना, सतर्कता, विनम्रता से निष्ठा और समर्पण संग सेवा निभाएं: सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज
गन्नौर-समालखा, अजीत कुमार: निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने समागम के पहले दिन मानवीय गुणों, भक्ति, और सर्वव्यापी परमात्मा के महत्व पर बल दिया। उन्होंने भक्ति को जीवन के हर पहलू में शामिल करने और प्रेम व सेवा के माध्यम से मानवता को समर्पित करने का आह्वान किया।
गन्नौर-समालखा हल्दाना बोर्डर पर स्थित मैदानों में शनिवार की रात को मंगलकारी प्रवचनों की रसघारा प्रवाहित कर रते हुए माता ने दिव्य संदेश दिया। रविवार की दोपहर को दिन में सेवादल रैली हजारों सेवादल के भई बहनों ने अपने सतगुरु का नमन किया। भक्ति भाव के साथ ज्ञानवर्धक नाटक प्रस्तुत किए। तीन दिवसीय समागम में भारत और दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु उपस्थित हुए हैं।
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आध्यात्मिकता और मानवीय गुणों पर चिंतन
सतगुरु माता जी ने कहा कि समागम के प्रथम दिन वक्ताओं ने परमात्मा की सर्वव्यापकता और असीमता पर गहराई से चर्चा की कि निराकार, अजर-अमर परमात्मा समय और स्थान की सीमाओं से परे हैं। धर्मग्रंथों में वर्णित इस शक्ति को भक्ति और ब्रह्मज्ञान के माध्यम से अनुभव किया जा सकता है। वक्ताओं ने जीवन के हर पहलू सामाजिक, पारिवारिक या व्यक्तिगत में परमात्मा की उपस्थिति को महसूस करने की प्रेरणा दी।
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भक्ति: जीवन के हर पल की साधना
भक्ति की परिभाषा को एक नया दृष्टिकोण देते हुए सतगुरु माता जी ने कहा कि यदि जीवन के हर क्षण को भक्ति में बदल दिया जाए, तो अलग से पूजा का समय निकालने की आवश्यकता नहीं रहती। इस विचारधारा ने न केवल सोच में व्यापकता लाने पर बल दिया, बल्कि दूसरों के प्रति नि:स्वार्थ सेवा और प्रेम की भावना को भी प्रोत्साहित किया। संतों के संग और ध्यान (सुमिरन) को आत्मा की गहराई से जोड़ने का माध्यम बताया गया।
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प्रेरक कहानी: प्रेम की भावना
एक प्रेरक कहानी के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि हर व्यक्ति, चाहे अपरिचित ही क्यों न हो, हमारे लिए पड़ोसी है। कहानी में एक बच्चा शिक्षक की शिक्षा को जीवन में उतारता है और अजनबी की सहायता करता है। यह केवल दायित्व नहीं, बल्कि प्रेमपूर्ण कर्तव्य का उदाहरण है।
सहनशीलता और विनम्रता का प्रतीक: गहरा समुद्र
वक्ताओं ने समुद्र की गहराई और शांति को सहनशीलता और विनम्रता का प्रतीक बताया। जैसे समुद्र सब कुछ समेट लेता है और शांत रहता है, वैसे ही मनुष्य को भी अपने भीतर सहिष्णुता और विशालता विकसित करनी चाहिए।
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व्यावहारिक आध्यात्मिकता का महत्व
संतों की जीवन शैली व्यावहारिक आध्यात्मिकता का आदर्श है। संत अपने पारिवारिक और सामाजिक कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी आध्यात्मिकता को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। उनकी विनम्रता और सेवा भावना प्रत्येक कार्य में प्रेरणा देती है।
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प्रेम और आत्मचिंतन की प्रेरणा
भक्तों ने संदेश दिया कि परमात्मा का संग और प्रेम जीवन का लक्ष्य ही नहीं, बल्कि उसकी प्रक्रिया है। यह यात्रा आत्मचिंतन से शुरू होकर, बाहरी संसार तक प्रेम का विस्तार करती है। यह न केवल व्यक्ति के व्यक्तित्व को ऊंचा उठाती है, बल्कि हर समय और स्थान पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
समागम के इस प्रथम दिवस ने उपस्थित जनों को आत्मचिंतन, सहनशीलता, और प्रेमपूर्ण जीवन जीने का संदेश दिया। यह जीवन के हर पल को भक्ति का रूप देकर, करुणा और सेवा की भावना को अपनाने की प्रेरणा था।
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चेतना, सतर्कता, विनम्रता से निष्ठा और समर्पण संग सेवा निभाएं: सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज
निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने रविवार को आयोजित सेवादल रैली में उपस्थित श्रद्धालुओं को सेवा, समर्पण और विनम्रता का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि सेवा का भाव न केवल पवित्र है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और अनुशासन का प्रतीक है। सेवादल की वर्दी को महज बाहरी आवरण न मानकर इसे अपने भीतर के अहंकार को मिटाने और सेवा-भाव को जागृत करने का माध्यम समझा है।
सतगुरु माता जी ने कहा कि सेवा करते समय किसी भी प्रकार का स्वार्थ या लालच नहीं होना चाहिए। सेवा का हर कार्य, चाहे वह लंगर सेवा हो, पार्किंग प्रबंधन, टॉयलेट सफाई या संगत का प्रबंधन, पूरी चेतना, सतर्कता और विनम्रता के साथ होना चाहिए। उन्होंने कहा कि निरंकार का चयन हमें जिम्मेदारी निभाने के लिए करता है और इसे हम पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभाएं।
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माता जी ने कहा कि सेवादल के सदस्य अपनी ड्यूटी निभाने के साथ-साथ घर-परिवार की जिम्मेदारियों का भी सामंजस्य करते हैं। यह तालमेल एक आदर्श जीवन का उदाहरण है। रैली के दौरान प्रस्तुत नाटकों और संदेशों ने यह दर्शाया कि सेवा केवल कार्य नहीं, बल्कि एक दिव्य भावना है जो हमारे आचरण और शरीर की भाषा में झलकनी चाहिए। हर सदस्य सेवा, सिमरन और सत्संग के इस जज्बे को निरंतर बढ़ाता रहे और अपने जीवन को निरंकार के प्रति समर्पित करते हुए समाज में अनुकरणीय योगदान दें।
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